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(२४४) समझना । तथा सिद्धायतन कूट और इसके ऊपर के शाश्वत श्री जिनेश्वर भगवन्त के प्रासाद का स्वरूप भी पूर्व के समान समझना । (३६६)
शेषेषु देव देवीनां प्रासादास्तेऽपि पूर्ववत् ।। स्वरूपं राजधान्यश्च प्राग्वत्तत्स्वामिनामपि ॥३६७॥
शेष सात कूट पट के देव देवियों के प्रासाद भी पूर्ववत् समझना । तथा उनकी राजधानी और स्वामियों का स्वरूप भी पूर्वोक्त के अनुसार समझना चाहिए । (३६७)
महापद्महदश्चास्योपरिमध्ये विराजते । द्वे सहस्रे योजनानामायामेनोदितः स च ॥३६८॥ . एकं सहस्रं विस्तीर्णः उद्विद्धोदशयोजनीम् । . . . तस्य मध्ये पद्ममेकं षट् परिक्षेप शोभितम् ॥३६६॥ युग्मं ॥
इस पर्वत के ऊपर मध्य भाग में 'महापद्म' नामक सरोवर है, वह दो हजार योजन लम्बा, एक हजार योजन चौड़ा और दस योजन गहरा है,इसके बीच एक सुन्दर कमल है । उस कमल के आस-पास अन्य कमलों के छः वलय हैं।
पद्म हृदाव्जतुल्यानि पान्येतानि संख्यया । विष्कम्भा यामवाहल्यैः द्विगुणानि सतः पुनः ॥३७०॥
इन सर्व कमलों की संख्या पद्म सरोवर के कमलों के समान है, परन्तु उनकी लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई से दो गुणा, दो गुणा है । (३७०)
तत्समानो द्विद्धतया हृदस्यास्य कजान्यपि । तावदेवोच्छ्रितानि स्युरेवमग्रेऽपि भाव्यताम् ॥३७१॥
दोनो सरोवर समान गहरे होने से दोनो के कमलों की ऊंचाइ में समानता है । आगे ऐसी बात आए वहां भी इसी तरह समझ लेना । (३७१)
मूल पद्मे च भवनं श्रीदेवी भवनोपमम् । .. हीदेवी च वसत्यस्मिन्नेकपल्योपम स्थितिः ॥३७२॥
मूल कमल में पूर्वोक्त श्री देवी के भवन समान भवन है और उसमें पल्योपम के आयुष्य वाली 'हीदेवी' रहती है । (३७२)
दाक्षिणात्यतोरणेन महापद्म हृदात्ततः । निर्गता रोहिता नाम्नी दक्षिणाभिमुखी नदी ॥३७३॥