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________________ (२४३) इसका 'धनुःपृष्ट' सत्तावन हजार दो सो तिरानवे योजने और दस कला कहा है । (३५८) सहस्राणि नवशतद्वयं षट् सप्ततिस्तथा । सार्द्धाः नवकलाः प्रोक्ता बाहास्यैकैक पार्श्वतः ॥३५॥ इसके दोनों तरफ का 'बाहा' प्रत्येक नौ हजार दो सौ छिहत्तर योजन और साढे नौ कला कहा है । (३५६) एकोनविंशति कोटयो योजनानां समन्विताः । अष्ट पंचाशता लक्षैरष्टषष्टया सहस्रकैः ॥३६०॥ शतं च षड शीत्याढयं कला दस तथाधिकाः। . विकला: पंच शैलेस्मिन् गणितं प्रतरात्मकम् ॥३६१॥ युग्मं ॥ इसका प्रतरात्मक गणित' अर्थात् प्रतर उन्नीस करोड़ अट्ठावन लाख अड़सठ हजार एक सौ छियासी योजन दस कला और पांच विकला है । (३६०-३६१) शतान्येकोन चत्वारिंशत्कोटीना तथा पराः । कोटयः सप्तदश लक्षाः षड्विंशदथ चोपरि ॥३६२॥ सप्त त्रिशत्सहस्राणि त्रिशती सहिताष्टभिः । विकला द्वादशेत्युक्तं महाहिमवतो धनम् ॥३६३॥ युग्मं ॥ इसका घनक्षेत्रफ़ल उन्तालीस सौ सत्रह करोड़ छत्तीस लाख सैंतीस हजार तीन सौ आठ योजन और ऊपर बारह विकला कहा है । (३६२-३६३) कूटान्यष्टौ पर्वतेऽस्मिन् सिद्धायतनमादिमम् । महाहिमवदाव्हानं तथा हैमवताभिघम् ॥३६४॥ रोहिताख्यं च हीकूटं हरि कान्ताभिधा तथा । हरिवर्ष च वैडूर्य कूटानि हिमवद् गिरेः ॥३६५॥ युग्मं ॥ इस पर्वत पर आठ कूट है, उसमें पहला सिद्धायतन दूसरा महा हिमवत्, तीसरा हेमवत् चौथा रोहित, पांचवा हीकूट, छटा हरिकान्त, सातवां हरिवर्ष और आठवां वैडूर्य कूट है । (३६४-३६५) पूर्वापरायत श्रेण्याः स्थितिः मानं च पूर्व वत् । प्राग्वत्सिद्धायतने च प्रासाद्रः शाश्वतोऽर्हताम् ॥३६६॥ इस पर्वत की पूर्व पश्चिम लम्बी श्रेणी की स्थिति और मान, पूर्व के समान
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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