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अस्योत्तरान्ते च महाहिमवान्नाम पर्वतः । सर्वरत्नमयो भाति द्वियोजन शतोन्नतः ॥३५३॥ .
इस हैमवंत क्षेत्र की उत्तर दिशा में सर्वरत्नमय और दो सौ योजन ऊंचा हिमवान् नाम का पर्वत है । (३५३)
"अयं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्त्यभिप्रायः ॥ बृहत्क्षेत्र विचारादौ तु अस्यपीत स्वर्ण वर्ण मयत्वमुक्तम् इति मतान्तरमसेयम् । अनेनैव च मतान्तराभि प्रायेण जम्बूद्वीप पट्टादौ अस्य पीत वर्णत्व दृश्यते इति ॥" . .. _ 'यह अभिप्राय जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र' का है। 'बृहत क्षेत्र विचार' आदि ग्रन्थों में तो 'सर्वरत्नमय' के स्थान पर 'पीतस्वर्ण मय' लिखा है यह मतान्तर.समझना ।
और इस मतान्तर के ही अभिप्राय को लेकर जम्बूद्वीप के पट्ट आदि में पीत वर्ण (पीले रंग) दिखता है।'
पंचाशतं योजनानि स निमग्नो धरान्तरे । पूर्व पराम्भोनिधिस्पृक् प्रमिमासुरिवान्तरम् ॥३५४॥
यह पर्वत पचास योजन पृथ्वी के अन्दर है, मानो यह पूर्व और पश्चिम समुद्र .. बीच के अन्तर को मापता हो, इस तरह दोनों समुद्र को स्पर्श करके रहा है । (३५४)
योजनानां सहस्राणि चत्वार्यस्य शद्वयम् । दशोत्तरं दश कला विष्कम्भोऽथ शरं ब्रवे ॥३५५॥ योजनानां सहस्राणि सप्तैवाष्ट्रौ शतानि च । चतुर्नवत्युपेतानि चतुर्दश तथा कलाः ॥३५६॥
इसका 'विष्कम्भ' चौड़ाई चार हजार दो सौ दस योजन और दस कला है और 'शर' सात हजार आठ सौ चौरानवे योजन और चौदह कला कहते है। (३५५-३५६)
त्रिपंचा शत्सहस्राणि शतानी नव चोपरि । एकत्रिंशद्यो जनानि ज्यास्य सार्धाश्च षट् कलाः ॥३५७॥
इसकी 'ज्या' तिरपन हजार नौ सौ इक्तीस योजन और ऊपर साढे छः कला है । (३५७)
सहस्राः सप्तपंचाशत्रिनवत्यधिको शतौ । महाहिमवति प्रोक्तं धनुःपृष्टं कलाः दश ॥३५८॥