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________________ (२४०) द्विधा विभक्तं गिरिणा नेन हैमवंत किल । पूर्वहै मवतं चैवापरहै मवतं तथा ॥३४१॥ . इस वृत वैताढय पर्वत ने हैमवंत क्षेत्र को दो विभाग में बांट दिया है । एक भाग पूर्व हैमवंत और दूसरे विभाग में पश्चिम हैमवंत क्षेत्र है । (३४१) पुनरेकैकमर्थं तत् सरिद्भ्यां विहितं द्विधा । रोहितांशा रोहिताभ्यां स्नुषाभ्यामिव मंदिरम् ॥३४२।।.. दक्षिणार्द्ध चोत्तरार्द्ध इति जातं चतुर्विधम् । षट् पंचाशत् सहस्राणि द्वयुत्तराण्यत्र निम्नगाः ॥३४३॥ युग्मं ॥. जिस तरह दो पुत्र वधू आकर घर का बटवारा करने के लिए दो विभाग कर लेती है वैसे 'रोहिता और रोहितांशा' नाम की दो नदियों में इस प्रत्येक भाग के दक्षिणार्द्ध और उत्तरार्द्ध इस तरह से दो-दो विभाग कर दिये हैं, अत: इस तरह से इस हैमवंत क्षेत्र के चार विभाग बने है । (३४२-३४३) क्षेत्रानुभावतस्तत्र भूः शर्करादिजित्वरी । चक्रीभोज्यजिदास्वादफलपुष्पाः सुरद्रुमासः ॥३४४॥ इस क्षेत्र के अन्दर छप्पन हजार और दो नदियां हैं । इस क्षेत्र का ऐसा प्रभाव है कि इसकी धरती शक्कर से भी मीठी है । इसके कल्पवृक्ष के पुष्पफल भी चक्रवर्ती के भोजन से भी अधिक स्वादिष्ट हैं । (३४४) येऽपि यूका मत्कुणाद्या लोकसन्तापकारिणः । यक्ष भूतामयाद्युत्था. दोषास्तत्र न सन्ति ते ॥३४५॥ वहां लोगों को संताप कारक जूं खटमल आदि जीवों का दुःख नहीं है, तथा भूत प्रेत यक्ष या रोग आदि किसी तरह का उपद्रव नहीं है । (३४५) . भवन्त्यहिंसका व्याघ्रसिंहाद्याः स्वर्गगामिनः । . . उद्गतान्यपि धान्यानि नराणां नोपयुक्तये ॥३४६॥ वहां के बाघ सिंह आदि हिंसक पशु भी अहिंसक होते हैं और वे भी युगलिक होने से स्वर्गगामी है । अनाज भी वहां बहुत उत्पन्न होता है, परन्तु मनुष्य इसका उपयोग नहीं करते है । (३४६) मनुजास्तत्र गव्यूतोत्तुंगाः पल्योपमायुषः । उत्कर्षतो जघन्याच्च देशोनपल्यजीविनः ॥३४७॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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