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(२३६) सर्व रत्नमयो वृत्तवैताढयो धरणीधरः । मध्यभागे विभात्यत्र पल्यवत्सर्वतः समः ॥३३६॥
इस क्षेत्र के मध्य भाग में सर्वरत्न मय तथा प्याला (कटोरा) समान गोलाकार वृत वैताढय पर्वत शोभायमान हो रहा है । (३३६)
"जम्बूद्वीप संग्रहणी वृत्तौतु पंचवर्ण रत्नमयः।"
'जम्बू द्वीप संग्रहणी की टीका में सर्व रत्नमय के स्थान पर पंचवर्ण रत्नमय पर्वत बतलाया है ।'.
नाम्ना च शब्दापातिति सहस्त्र योजनोन्नतः । शतान्यर्द्ध तृतीयानि स निमग्नो भुवोऽन्तरे ॥३३७॥ सहस्र योजनायाम विष्कम्भः परिवेषतः । त्रयः सहस्रा द्वाषष्टया योजनानां शतं युतम् ॥३३८॥ युग्मं ॥
'शब्दपाती' नाम का यह.पर्वत एक हजार योजन ऊंचा दो सौ पचास योजन पृथ्वी के अन्दर गूढ और हजार-हजार योजन लम्बा चौड़ा है इसका घेराव तीन हजार एक सौ बासठ योजन का होता है । (३३७-३३८)
: अभितोऽयं गिरिः पद्म वेदिका वन मंण्डितः । - प्रासादो भात्युपर्यस्य स्वरूपं तस्य पूर्ववत् ॥३३६॥
इसके आस पास सुन्दर पद्मवेदिका और वन खंड शोभायमान हैं। इसके ऊपर एक प्रासाद है, इसका वर्णन पूर्व के समान समझना । (३३६) .. स्वातिनामा सुरस्तस्य स्वाम्येकपल्यजीवितः ।
राजधान्यादिकं त्वस्य सर्वं विजयदेववत् ॥३४०॥
इसका स्वामी स्वाति नाम का देव है उसका आयुष्य एक पल्योपम का है और इसकी राजधानी आदि सर्व विजयदेव के समान है । (३४०)
"अयं क्षेत्रसमासाभिप्रायः ।यत्तुजम्बूद्वीपपज्ञप्त्यांअत्रशब्दापातिनामा देवः उक्तः तन्नामान्तरं वा मतान्तरं वेति सर्व विद्धधम् ॥"
"इस तरह से क्षेत्र समास का अभिप्राय है 'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति' सूत्र में तो शब्दापति नाम का देव कहा है । नामान्तर हो अथवा मतान्तर हो वह सर्वज्ञ परमात्मा जाने ।"