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________________ (२३८) . द्वे सहस्र योजनानां शतं पंचोत्तरं तथा । कलाः पंचैव विष्कम्भः क्षेत्रस्यास्यनिरूपितः ॥३२६॥ इस क्षेत्र की चौड़ाई दो हजार एक सौ पांच योजन और पांच कला की कही है । (३२६) . तथा शतानि षत्रिंशच्चतुरशीतिरेव च । योजनानि चतस्रश्च कलाः शर इह स्मृतः ॥३३०॥ .. और इस क्षेत्र का 'शर' तीन हजार छ: सौ चौरासी योजन और चार कला बतलाया है । (३३०) सप्तत्रिंशत्सहस्राणि योजनानां शतानि षट् । ...... चतुः सप्ततिरस्य ज्यान्यूनाः कलाश्च षोडश ॥३३१॥ इसकी 'ज्या' सैंतीस हजार छः सौ चौहत्तर योजन और ऊपर लगभग सोलह कला कही है । (३३१) . ....... . अष्टात्रिशत्सहस्राणि तथा सप्त शतानि च । चत्वारिंशानि कोदण्ड पृष्टमस्य कला दश ॥३३२॥ तथा इनका 'धनुः पृष्ट' अड़तीस हजार सात सौ चालीस योजन और ऊपर दस कला होता है । (३३२) , सहस्राः षट् सप्तशती पंच पंचाशदन्विता । तिस्त्रः कलाश्च बाहात्र प्रत्येकं पार्श्वयोः द्वयोः ॥३३३।। और इसकी दोनो ओर दो 'बाहा' है उन प्रत्येक का प्रमाण छः हजार सात सौ पचपन योजन और तीन कला है । (३३३) अत्र क्षेत्रफलं कोटयः षट् लक्षाणि द्विसप्ततिः । त्रिपंचाशत् सहस्राणि योजनानां शतं तथा ॥३३४॥ पंचचत्वारिंशदाढयं कलाः पंच तथोपरि । अष्टौ च विकलाः प्रोक्तं खण्डैर्योजनसम्मितैः ॥३३५॥ युग्मं ॥ . योजन-योजन प्रमाण खण्डो से बना हुआ इसका क्षेत्रफल छ: करोड़ बहत्तर लाख, तिरपन हजार एक सौ पैंतालीस योजन, पांच कला और ऊपर आठ विकला का है । (३३४-३३५)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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