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६- विधुत्मुख और ७- गूढदंतक। इस नाम के सात द्वीप नैर्ऋत्य कोन की दाढा में आते है । (३१६)
वायव्यां नांगोलिकाख्यः शष्कुलीकर्ण इत्यपि । गोमुखो व्याघ्रमुखश्च कर्णप्रावरणाभिधाः ॥३१७॥ विद्युद्दन्तशुद्धदन्तावष्टाविंशतिरित्यमी । विराजनतेऽन्तर द्वीपा हिमवगिरिनिश्रया ॥३१८॥ युग्मं ॥
तथा १- नांगोलिक, २- शब्कुलकर्ण, ३- गोमुख, ४- व्याघ्रमुख ५- कर्ण प्रावरण, ६- विद्युत्दंत और ७- शुद्धदंत - इस नाम के सात द्वीप वायव्यकोण की दाढा में आये है । इस तरह समग्र अट्ठाईस अन्त द्वीप, हिमवंत पर्वत के सान्निध्य से अतीव शोभायमान हो रहे है । (३१८)
- तातवन्त एवं शिखरिगिरेर्दाढाचतुष्टये । । तथैव संस्थिता एवं षट्पंचाशत् भवन्त्यमी ॥३१६॥ ..
इसी ही तरह शिखरी पर्वत की चारों दाढाओं पर भी अट्ठाईस द्वीप शोभायमान है । अतः कुल मिलाकर छप्पन द्वीप होते है । (३१६)
प्रत्येकमेते सर्वेऽपि वेदिकावनमण्डिताः ।।
समानं च तयोर्मानं जगतीवेदिकावनैः ॥३२०॥
इन प्रत्येक अन्तर द्वीपों के आस-पांस पद्म वेदिका और बगीचे आये हैं - उसका प्रमाण जगती की वेदिका और बाग समान ही है । (३२०)
द्वीपेषु सर्वेष्वेतेषु नरास्तिष्ठन्ति युग्मिनः ।
अष्टचापतोत्तुंगाः पल्या संख्यांश जीविनः ॥३२१॥
इन सर्व द्वीपों में आठ सौ धनुष्य प्रमाण काया वाला, और पल्योपम के असंख्यात्वे विभाग के आयुष्य वाले युगलिक मनुष्य रहते है । (३२१)
दिनान्य शीतिमेकाना विहिता पत्यपालनाः । चतुष्षष्टया लसत्पृष्टकरण्डकैस्सुशोमिताः ॥३२२॥ चतुर्थभक्ताहाराश्च कल्पद्रुफल भोजिनः । सुन्दराकृत्यो रागद्वेषशोक रू जोज्झिताः ॥३२३॥ युग्मं सुत सुता रूपं षण्मासशेष जीविताः । प्रसूय यान्ति त्रिदिवमन्ते मृत्वा समाधिना ॥३२४॥ विशेषांक