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(२३१) कुंड की लम्बाई-चौड़ाई एक सौ बीस योजन की है, उसमें एक द्वीप है, उसकी लम्बाई-चौड़ाई सोलह योजन की है । (२७६)
अस्याः प्रपात कुण्डस्योद्वेधो द्वीपस्य चोच्छ्रयः । भवनस्य स्वरूपं च ज्ञेयं गंगासमं बुधैः ॥२८०॥ .
कुंड की गहराई, उसमें रहे द्वीप की उंचाई तथा उस द्वीप में रहे भवन का स्वरूप आदि सब गंगा प्रपात कुंड वर्णन में है, उसी तरह जानना । (२८०)
गिरेहिमवतोऽथास्य प्राचीन पश्चिमान्तयोः । लवणोदजलस्पर्शादारभ्य किल निर्गता ॥२८१॥ दाटै कैका विदिशासु गजदन्तसमाकृतिः ।
ऐशान्यामथ चाग्नेय्यां नैर्ऋत्यां वायु कोणके ॥२०२॥ युग्मं । . इस हिमवंत पर्वत को गजदंत आकार की चार दाढ़ें आई हैं, जो इसके पूर्व पश्चिम अन्तिम किनारे के लवण समुद्र के जल का स्पर्श होता है, वहां से निकल कर ईशान, अग्नि, नैर्ऋत्य तथा वायत्व इस तरह चार दिशाओं में गयी है । (२८१-२८२)
ऐशान्यां तत्र जगतीपर्यन्ताल्लवणोदधौ । दाढायां योजनशतत्रयस्य समतिकमे ॥२८३॥ . द्वीप एकोरूकाख्योऽस्ति योजनानां शतत्रयम् । विष्कम्भायामतः पद्मवेदिका वन मण्डितः ॥२८४॥ युग्मं । किंचिदूनैकोनपंचाशता समधिका किल । योजनानां नवशती परिक्षेपोस्य कीर्तितः ॥२८॥ अस्य जम्बूद्वीप दिशि जलोपरि समुच्छ्रयः । सार्द्ध द्वयं योजनानां भागाश्चोपरि विंशतिः ॥२८६॥ पंचनवतिभक्तस्य योजनस्य तथोच्छ्यः । लवणाम्भोधिदिश्यन्ते क्रोश द्वयमुदीरितः ॥२८७॥ युग्मं ।
इन चारों में से ईशान और दाढा में, जगती के आखिर विभाग से तीन सौ योजन लवण समुद्र में जाने के बाद एकोरूक नाम का एक दीप आता है, उसकी लम्बाई-चौड़ाई तीन सौ योजन है, उसका घेराव नवसौ उनचास योजन से कुछ कम है, इसके आस-पास पद्मवेदिका और सुन्दर बगीचे आए है, यह द्वीप जम्बू