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में चौदह हजार नदियां मिलती हैं । उसके परिवार को लेकर उस क्षेत्र के मध्य वैताढय से दो कोस के अन्तर में आती है। वहां से आगे बढ कर पश्चिम की ओर बहती हुई पुनः अन्य चौदह हजार नदियों से संगम होता है । अतः कुलं अट्ठाईस हजार नदियों का परिवार लेकर हैमवंत क्षेत्र के पश्चिम तरफ के अर्द्धभाग को भेदन कर उसके मध्य मार्ग में होकर तथा जगती - किल्ले को भी नीचे से भेदन कर गंगा सिन्धु नदियों की सपत्नी समान दुगुणा समृद्धिशाली और समुद्र रूपी पति को प्रिय समान वह पश्चिम समुद्र में मिलती है । (२६७-२७३)
कुण्डाद्विनिर्गमं यावदारभ्य हृदनिर्गयात् । सार्द्धानि योजनान्यस्या विष्कम्भोद्वादशोदितः ॥२७४॥ .
सरोवर में से निकल कर कुंड तक पहुंचती, उसकी चौड़ाई साढ़े बारह योजन कही है और गहराई एक कोस की कही है । (२७४)
गव्यूतमेक मुद्वेधस्ततः कुण्डोद् गमादनु । प्रतियोजनमेकैकपार्वे व्यासो विवर्द्धते ॥२७५॥ ... कोदण्डानि दस दशोभयतस्तानि विंशतिः । लवः पंचाशत्तमश्च व्यासस्योद्वेध आहितः ॥२७६॥ युग्मं । योजनानां शतं चैवं सपादमब्धि संगमे । व्यासोऽस्याः क्रोश दशकमुद्वेधश्च प्रजायते ॥२७७॥
कुंड में से निकलने के बाद इसकी चौड़ाई दोनों तरफ प्रत्येक योजन में दस-दस धनुष्य कुल मिलाकर बीस धनुष्य' बढ़ते जाते हैं । इसकी सर्वत्र गहराई चौड़ाई के पचासवें भाग सदृश कही है । अतः जब समुद्र संगम होता है, तब चौड़ाई सवा सौ योजन की होती है। उस समय उसकी गहराई उसके पचासवें भाग दस कोस की होती है । (२७५-२७७)
व्यासायामौ जिव्हि कायाः सार्ध द्वादश योजनी। बाहल्यमस्या निर्दिष्टमेक क्रोशमितं जिन : ॥२७८॥
इसकी विशाल धारा की लम्बाई-चौड़ाई साढ़े बारह योजन और मोटाई एक कोस प्रमाण है । (२७८)
सविशं योजनशतं कुण्डस्यायति विस्तृती । द्वीपस्यायाम विष्कम्भौ योजनानीह षोडश ॥२७॥