________________
(२३२) द्वीप की ओर अढाई योजन, बीस पंचानवे अंश है, अर्थात् दो पूर्णांक सत्ताईस, अड़तीसांश २-२७/३८ इतना जल ऊपर है और लवण समुद्र और दो कोस जल ऊपर है । (२८३-२८७)
तत्रैव दाढायां तस्मात् द्वीपाच्चतुःशतोत्तरः । हयकर्णमिधो द्वीपश्चतुः शतायताततः ॥२८८॥ शतानि द्वादश न्यूनपंचषष्टियुतानि च । परिक्षेपोऽस्याब्धिदिशि द्वौ क्रोशाबुच्छ्यो जलात् ॥२८६॥ योजनानां द्वयं सार्द्ध नवत्यांशैः समन्वितम् ॥
अस्य जम्बू द्वीप दिशि ख्यातः खलु समुच्छ्रयः ॥२६०॥ .
इसी दाढा में इसी द्वीप से चार सौ योजन के अंतर (फासिले) में दूसरा हयकर्ण नामक द्वीप है, इसकी लम्बाई-चौड़ाई चार सौ योजन है और घेराव बारह सौ पैंसठ योजन से कुछ कम है। यह समुद्र की दिशा में दो कोश जल ऊपर.है और जम्बू द्वीप की ओर अढाई योजन ऊपर नब्बे-पचानवें अंश सद्दश जल ऊपर है । (२८८-२६०)
अत्रायमाम्नाय : - पूर्व द्वीप परिक्षेपे योजनानां त्रिभिः शतैः । षोडशाढयैः संकलिते परिक्षेपोऽग्रिमो भवेत् ॥२६१॥ तथा :- जम्बू द्वीप दिशि जलात्याग्द्वीपे यः समुच्छयः ।
स पांचनवतेयांशसप्तत्या संयुतोऽग्रिमे ॥२६२॥ यहां परम्परा इस तरह है - पूर्व से पूर्व के द्वीप का घेराव (के योजन) में तीन सौ सोलह योजन मिलाने से आगे-आगे के द्वीप का घेराव आता है, और जम्बू द्वीप की ओर पूर्व-पूर्व के द्वीप भी जल से ऊपर जितनी उंचाई हो उसमें सत्रह, पचानवे अंश मिलाने से आगे से आगे के द्वीप की उंचाई आती है । (२६१-२६२)
जम्बू द्वीपजगत्याश्च द्वीपस्यास्य मिथोऽन्तरम । कर्णभूमिरूपमुक्तं योजनानां चतुः शती ॥२६३॥ .
जम्बू द्वीप की जगती, और इस द्वीप के बीच में कर्ण भूमि रूप परस्पर चार सौ योजन का अन्तर है । (२६३)