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(२२७) अथ गंगा महानद्या यत्राम्भे निधिसंगम : । तत्र तीर्थमागधाख्यं तस्येशो मागधः सुरः ॥२५५॥
इस गंगा महा नदी का समुद्र के साथ में संगम होता है, वहां 'मागध' नाम का तीर्थ है और उसका स्वामी मागध नामक देव है । (२५५)
एवं सिन्धु नदी वार्द्धि योगे प्रभासनामकम् । एतयोरन्तराले च वरदामं पयोनिधौ ॥२५६॥
इसी ही प्रकार सिन्धु नदी के समुद्र संगम के पास में प्रभास तीर्थ है और दोनो तीर्थों के बीच समुद्र के अन्दर वरदाम तीर्थ आया हुआ है । (२५६) ___ "तथोक्तं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तौ । गंगा मागध तीर्थ स्थाने समुद्र प्रविशति तथा प्रभासनाम तीर्थ स्थाने सिन्धु नदी समुद्रं प्रविशति ॥"
'इस विषय में जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की वृत्ति में कहा है, कि गंगा नदी मागधतीर्थ के पास समुद्र में मिलती है। और सिन्धु नदी प्रभास तीर्थ के पास समुद्र में मिलती है।'
तीर्थं नामावतरण मार्गेऽम्भौधौतटाकवत् ।
तीर्थस्यार्थो भाव्य एवं शीता शीतोदयोरपि ॥२५७॥ . "तालाब के समान समुद्र में उतरने का मार्ग ही वह तीर्थ कहलाता है, तीर्थ शब्द का अर्थ शीत और शीतोदा नदियों के सम्बन्ध में भी समझना । (२५७)
तदुक्तं स्थानांगवृत्तौ।तीर्थानिचक्रवर्तिनःसमुद्रशीतादि महानद्यवतार लक्षानि तन्नामक देव निवास भूतानि । तत्र भरतैरवतयोः तानि पूर्व दक्षिणा पर समुद्रेषु । विजयेषुतुशीता शीतोदा महानद्यो : पूर्वादिक्रमेणैव ।इति तृतीये स्थानके ॥" . ...
"स्थानांग सूत्र के तीसरे स्थानक में कहा है कि - समुद्र और आदि नदियों में चक्रवर्ती के उतरने का मार्ग रूप जो तीर्थ है, उसी ही नामके देव को रहने का स्थान स्वरूप है । भरत और ऐरावत क्षेत्रों के तीर्थ पूर्व, दक्षिण और पश्चिम समुद्र में आये हैं । और विजयादि के तीर्थ पूर्व आदि दिशा के अनुक्रम से ही शीता और शीतोदा नदियो में आये हैं।"
एषां तीर्थसद्दकनाम्नां देवानां स्वस्वतीर्थतः । योजनेषु द्वादश सु राजधान्यः पयोनिधो ॥२५८॥