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________________ (२२५) गंगा द्वीपश्च भात्यस्मिन् द्वौ कोशावुच्छ्तिो जलात् । अष्टौ च योजनान्येष विष्कम्भायामतोमतः ॥२४५॥ इस कुंड के अन्दर गंगा द्वीप नाम का एक सुन्दर द्वीप है, उसकी जल से उंचाई दो कोस और लम्बाई-चौड़ाई आठ योजन है । (२४५) गंगाद्वीपोपरि गंगाभवनं पीठिकादि युक । स्वरूप तो मानतश्च श्री देवी भवनोपमम् ॥२४६॥ इस द्वीप में पीठिका आदि से गंगा देवी का भवन शोभायमान है । उसके स्वरूप इत्यादि श्री देवी के भवन के समान है । (२४६) दाक्षिणात्यतोरणेन गंगाप्रपात कुण्डतः । । निर्गत्य वैताढयोपान्ते नदीसप्तसहस्रयुक ॥२४७॥ खण्ड प्रपात प्राग्भागे भित्वा वैताढय भूधरम् । दाक्षिणात्य सप्तनदी सहस्रा पूरिवारिता ॥२४८॥ एवं चतुर्दश नदी. सहस्रापूरिताभितः । पूर्व तो जगती भित्वा गंगा विंशति वारिधिम् ॥२४६॥ त्रिभिः विशेषकम् ॥ ___गंगा प्रपात कुंड के दक्षिण के तोरण से गंगा नदी निकलती है, और वैताढय पर्वत के पास में आने तक में सात हजार नदियां मिलती है। वहा संखंड प्रपाता गुफा के. पूर्व विभाग में वैताढय पर्वत को भेदन कर आगे बहती है, वहां उसे दक्षिणार्ध भरत की अन्य सात हजार नदियां मिलती हैं । इस तरह चौदह हजार नदियों के परिवार सहित पूर्व की और जगती - किले को भेदन कर वह समुद्र में मिलती है । (२४७-२४६) सक्रोशानि योजनानि षडस्या हृदनिर्गमे । व्यासः क्रोशार्धमुद्वेधः कुण्डपातावधिः स च ॥२५०॥ सरोवर में से निकल कर कुंड में आए वहां तक, इसकी चौड़ाई छ: योजन और एक कोस है और गहराई आधा कोस होती है । (२५०) ____ तथोक्तं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे । गंगाणं महानई पवाहे छ सक्को साई जो अणाई विरक्खं भेणं पणत्ता अद्ध कोसं उव्वेहेणं ॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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