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योजन गहरे तथा साठ योजन के विस्तर वाले गंगा प्रपात नामक कुंड में गिरता है। (२४०-२४१)
तथाहु : क्षमा श्रमण पादाःआयामो विख्खंभो सटुिं कुंडस्य जोअणा हुंति। नउ असयं किंचूणं परि हि दसजोअणोगाहो ॥२४२॥
इस सम्बन्ध में पूज्य श्री क्षमा श्रमण ने कहा है कि -- यह कुंड लम्बाई चौड़ाई में साठ योजन है, गहराई में दस योजन और घेराव में लगभग एक सौ और नव्वे योजन है । (२४२)
'इति बृहत् क्षेत्र समासे' अर्थात् इस तरह से वृहत् क्षेत्र समास में भी कहा
श्रीउमास्वाति कृतजम्बूद्वीपसमासे करणविभावनायांच मूले पण्णासं जोअणवित्थारो उवरि सट्ठो इति विशेषोऽस्ति ॥
'श्री उमा स्वाति रचित जम्बू द्वीप समास में तथा करण विभावना में तो इस तरह कहा है कि - मूल में विस्तार पचास योजन है, और ऊपर के भाग में साठ योजन
'इत्थं च कुण्ड स्य यथार्थनामोपपत्ति रपि भवत्ति । एवमन्येष्वपि यथा योग्य ज्ञेयम्.॥'
इस तरह कुंड का अर्थ घट सकता है । इसी प्रकार से अन्य कुंड के सम्बन्ध में भी यथायोग्य समझ लेना चाहिए।
तच्च कुण्डं वेदिकया वनखण्डेन वेष्टितम् । पूर्वापराददक्षिणासु सोपान श्रेणि शोभितम् ॥२४३॥
उस कुन्ड के आस-पास एक सुन्दर पद्म वेदिका और मनोहर बगीचा है, और इसके पूर्व पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में सुशोभित सीढियों की श्रेणियां है । (२४३)
सोपान श्रेणयः सर्वावज स्तम्भाः सतोरणाः । . . रत्नालम्बनबाहाढया रैरूप्यफलकांचिताः ॥२४४॥
उन प्रत्येक सोपान की श्रेणियों में, तोरण, वज्र के स्तंभ रत्न जड़ित खंड (विभाग) हैं और सोने रूपे के फर्श हैं।