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________________ (२२४) - - योजन गहरे तथा साठ योजन के विस्तर वाले गंगा प्रपात नामक कुंड में गिरता है। (२४०-२४१) तथाहु : क्षमा श्रमण पादाःआयामो विख्खंभो सटुिं कुंडस्य जोअणा हुंति। नउ असयं किंचूणं परि हि दसजोअणोगाहो ॥२४२॥ इस सम्बन्ध में पूज्य श्री क्षमा श्रमण ने कहा है कि -- यह कुंड लम्बाई चौड़ाई में साठ योजन है, गहराई में दस योजन और घेराव में लगभग एक सौ और नव्वे योजन है । (२४२) 'इति बृहत् क्षेत्र समासे' अर्थात् इस तरह से वृहत् क्षेत्र समास में भी कहा श्रीउमास्वाति कृतजम्बूद्वीपसमासे करणविभावनायांच मूले पण्णासं जोअणवित्थारो उवरि सट्ठो इति विशेषोऽस्ति ॥ 'श्री उमा स्वाति रचित जम्बू द्वीप समास में तथा करण विभावना में तो इस तरह कहा है कि - मूल में विस्तार पचास योजन है, और ऊपर के भाग में साठ योजन 'इत्थं च कुण्ड स्य यथार्थनामोपपत्ति रपि भवत्ति । एवमन्येष्वपि यथा योग्य ज्ञेयम्.॥' इस तरह कुंड का अर्थ घट सकता है । इसी प्रकार से अन्य कुंड के सम्बन्ध में भी यथायोग्य समझ लेना चाहिए। तच्च कुण्डं वेदिकया वनखण्डेन वेष्टितम् । पूर्वापराददक्षिणासु सोपान श्रेणि शोभितम् ॥२४३॥ उस कुन्ड के आस-पास एक सुन्दर पद्म वेदिका और मनोहर बगीचा है, और इसके पूर्व पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में सुशोभित सीढियों की श्रेणियां है । (२४३) सोपान श्रेणयः सर्वावज स्तम्भाः सतोरणाः । . . रत्नालम्बनबाहाढया रैरूप्यफलकांचिताः ॥२४४॥ उन प्रत्येक सोपान की श्रेणियों में, तोरण, वज्र के स्तंभ रत्न जड़ित खंड (विभाग) हैं और सोने रूपे के फर्श हैं।
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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