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विषयों का विचार कर, जहां जितनी पंक्तियों का संभव है वहां उतनी पंक्तियां का एक वलय या मैंडल समझना, क्योंकि कमलों की अनेक जाति है और इसी पर पांच लाख योजन जितने उस हृद (सरोवर) के क्षेत्रफल में वे सर्वकमल सहज रूप में समा सकते है । क्योंकि इन पद्मों मे रोके के क्षेत्र के योजन का कुल जोड़ बीस हजार पांच योजन और तेरह षोडाशांश आने का संभव है।
इस सम्बन्ध में विशेष जिज्ञासु ने उपाध्याय श्रीमद् शान्तिचन्द्रगणि कृत जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की वृत्ति देखना चाहिए ।
ततः पद्म हृदात् गंगा प्राच्य तोरण निर्गता । योजनानां पंच शतीं गिरौ पूर्वेण गच्छति ॥२३६॥
पद्म सरोवर के पूर्व तोरण में से गंगा नदी निकलती है, वह पांच सौ योजन तक पूर्व दिशा में पर्वत ऊपर जाती है । (२३६)
गंगावर्तनकूटस्याधस्तादावृत्य सा ततः । दक्षिणाभिमुखी भूत्वाप्रवृत्ता पर्वतोपरि ॥२३७॥ त्रयोविंशां पंचशतीं योजनानां कलात्रयम् । सार्द्धं गत्वादक्षिणस्यां पतेत् जिव्हिकया नगात् ॥२३८॥ युग्मं ।
वहां से गंगा वर्तन कूट के बाजु में होकर दक्षिण सन्मुख घूमकर पर्वत पर चलती है, वहां से पांच सौ तेईस योजन और साढ़े तीन कला दक्षिण दिशा में जाकर वहां बड़े विशाल मात्रा में पृथ्वी पर गिरती है । (२३७-२३८)
सा. च प्रणालिका रूपा भात्यर्धक्रोशमेदुरा । द्विकोश दीर्घा सक्रोश षट्योजनसुविस्तृता ॥२३६॥
उसकी धारा प्रणालिका रूप में आधा कोस मोटी, दो कोस लम्बी और एक कोस छ: योजन चौड़ी है । (२३६)
वाजिकी व्यात्तमकरवक्त्राकारा तयाथ सा । सातिरेकं योजनानां शतमेकं पतत्यधः ॥२४०॥ योजनानि दशोद्विद्वे षष्टिं च विस्तृतायते । कुंडे गंगा प्रपाताख्ये चारूमुक्तावलीसमा ॥२४१॥ युग्मं । इससे मुंह फाड़कर बैठे मगरमच्छ के आकार वाले वज्र समान मजबूत, और मोती की माला समान सुन्दर धारा एक सौ योजन से विशेष उंचाई से नीचे दस