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कमल है, पांचवे वलय में मध्यम पर्षदा के अभियोगी देवों के चालीस लाख कमल है और छठे वलय में बाह्य पर्षदा के अभियोगी देवो के अड़तालीस लाख कमल हैं।
कोटयेका विंशतिर्लक्षाः पद्मानां सर्व संख्यया । सहस्राणि च पंचाशत् शतं विंशति संयुतम् ॥२३५॥
इस तरह सर्व मिलाकर कुल एक करोड़, बीस लाख, पचास हजार, एक सौ और बीस कमल होते हैं । (२३५)
अत्र षट् परिक्षेपा इति षट् जातीयाः परिक्षेपा इति वाच्यम् ॥तथाहि - आद्या मूल पद्मार्द्धमाना जातिः । द्वितीया तच्चतुर्थ भाग माना जातिः । यावत् षष्ठी चतुःषष्टितमभागमानाजातिरिति॥अन्यथातुयोजनात्मनासहस्त्रत्रयात्मके धनुरात्माना चत्वारिंशल्लक्षाधिक द्विकोटिप्रमिते हृदपरमपरिधौ षष्ठ परिक्षेप पद्मानां षष्ठि कोटि धनुः क्षेत्र मातध्यानाम् एक पंक्त्या अवकाशोनं संभवति॥
ततश्च तत्तत् परिधि क्षेत्र परिक्षेप पद्म संख्या विस्तारान् परिभाव्य यत्र यावत्यः पंक्तयः संभवन्ति तत्र तावतीभिः पंक्तिभिः एक एव परिक्षेपो ज्ञेयः। पद्मानामनेक जाती यत्वात् । एवं च पंच लक्ष योजनात्मके हृद क्षेत्रफल तानि सर्वाण्यपि पद्मानि सुखेन भान्त्येव । पद्मरूद्ध क्षेत्रस्य सर्व संकलनया विंशतिः सहस्राणि पंचाधिकानि योजनानां षोडश भागी कृतस्यैक योजनस्य त्रयोदश भाग इति, एतावत एव संभवात् इति । अधिकं तु उपाध्याय श्री शान्ति चन्द्र गणि कृत जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तितः अव से यम् ॥ ..
यहां छः वलय अर्थात् छः तरह के वलय समझना । वह इस प्रकार :प्रथम जाति मूल पद्म से आधे प्रमाण के है, दूसरे जाति मूल पद्म से चौथे भाग प्रमाण के है, तीसरी जाति मूल पद्म से १/८ भाग प्रमाण के है, चौथे जाति के सोलहवें भाग १/१६ प्रमाण के है, पांचवे बत्तीसवे भाग १/३२ भाग प्रमाण के है और छठी जाति मूलं पद्म से १/६४ भाग प्रमाण के है । यदि इस तरह न हो तो तीन हजार योजन अथवा दो करोड़ चालीस हजार धनुष्य के समान उस सरोवर के उत्कृष्ट घेराव में साठ करोड धनुष्य सद्दश क्षेत्र में समा सकते हैं । ऐसे छठे वलय के वलय पंक्ति में समा नहीं सकते है।
इसलिए उस परिधि क्षेत्र के घेराव के कमलों की संख्या तथा विस्तार दोनों