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________________ (२२०) . . इस सम्बन्ध में बृहत् क्षेत्र विचार की टीका में इस प्रकार कहा है, कि केवल चार बाह्य पत्र वैदूर्य रत्न के है, शेष पत्र लाल सुवर्ण के है । तथा 'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति' सूत्र में अभ्यन्तर पत्रों को जाम्बून मय अर्थात सहज रूप लाल वर्ण के सुवर्णमय कहे है । सिरिनिलय' क्षेत्र विचार की वृत्ति में तो पीला सुनहरा कहा है। तपनीयकेसरवृता सौवर्णी कर्णिका भवेत्तस्य । द्वि क्रोशायत वितता क्रौशोच्चा श्रीभवनमस्याम् ॥२२२॥ इसके केसर के वृन्त लाल सुवर्णमय हैं, और कर्णिका पीले सुनहरे कहा है । ये कर्णिका दो कोश लम्बी-चौड़ी और एक कोस उंची है और इसके अन्दर श्री देवी (लक्ष्मी) का भवन आया है । (२२२) एक क्रोशायतमेतत्तथार्द्ध क्रोश विस्तृतम् । ऊनकोशोन्नतं तत्र दक्षिणोत्तरपूर्वतः ॥२२३॥ पंचचापशतोतुंग तदर्द्धव्यासमेककम् । . .. द्वारं तत्राथ भवन मध्येऽस्ति मणि पीठिका ॥२२४॥ युग्मं । वह भवन एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा और लगभग एक कोस ऊंचा है । इसमें दक्षिण उत्तर और पूर्व-इस तरह तीनों दिशा में पांच सौ धनुष्य ऊंचा और इसमें आधा चौड़ा एक-एक द्वार-दरवाजा है। और इन भवनों के मध्य भाग में मणि पीठिका है । (२२३-२२४) , सापि पंच शत धनुर्व्यासायामार्द्ध मेदुरा । उपर्यस्या शयनीयं. श्रीदेवी योग्यमुत्तमम् ॥२२५॥ यह मणि पीठ पांच सौ धनुष्य के विस्तार वाला है, और इससे आधा अर्थात् अढाई धनुष्य का मोटा है, उसके ऊपर श्री देवी के योग्य उत्तम शय्या है । (२२५) षड्जातीयैः परिक्षेपैः वेष्टितं मूलपंकजम् । क्रमादर्भा मानाब्जाः परिक्षेपाः समेऽप्यमी ॥२२६॥ ऊपर जो कमल कहा है, उस मूल कमल के आस-पास इससे आधे-आधे माप के छः तरह के कमलों के छः समान वलय है । (२२६) . अष्टोत्तरं शतं पद्माः प्रथमे परिधौ स्थिताः । मूल पद्मादर्द्धमानाः श्रीदेवीभूषणैर्भूताः ॥२२७॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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