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________________ (२१८) एता देव्यश्च भवनपतिजातिगता मताः । व्यन्तरीणामर्द्ध पल्यमायुरूत्कर्षतोऽपि यत् ॥२१२॥ जो देविया हैं वे सब भवनपति जाति की होती हैं, क्योंकि व्यन्तर देवियों का तो आयुष्य उत्कृष्ट रूप में आधा पल्योपम का है । (२१२) एवं वक्ष्यमाणा अपि देव्या ज्ञेयाः॥ अब जो देवियों की बात आयेगी, वे देवियां भी भवनपति जाति की समझना। वक्ष्यमाणपर्वतेषु यानि चैत्यानि येऽपि च । प्रासादा देवतानां ते सर्वेऽवत्यैः समाः स्मृताः ॥२१३॥. . . जिन पर्वतों का अब वर्णन करने में आयेगा, उन पर्वतों पर जो चैत्यं और देवों के प्रासाद है वे सब इन पर्वत के चैत्य और प्रासाद समान समझ लेना चाहिए। (२१३) गिरेरस्योपरितलेहृदः पद्महदाभिधः ।... योजनानि दशोद्विद्धः सहस्रयोजनायतः ॥२१४॥ इस पर्वत पर एक पद्महद नाम का सरोवर आया है वह दस योजन गहरा, हजार योजन लम्बा और पांच सौ योजन चौड़ा है । (२१४) शतानि पंच विस्तीर्णो वेदिका वन मण्डितः। चतुर्दिशे तोरणाढय त्रिसोपान मनोरमः ॥२१५॥ और वह पद्म वेदिका और सुन्दर वन से शोभायमान है, और चारों दिशा में तोरण वाले तीन-तीन मनोहर सोपान है । (२१५) अयं च वक्ष्य माणाश्च महापद्महदादयः । सर्वे पूर्वापरायामा दक्षिणोत्तर विस्तृताः ॥२१६॥ यह पद्म सरोवर, और इसके बाद वर्णन करने में आयेगा, वह महापद्म हृद आदि सब पूर्व पश्चिम लम्बे और उत्तर दक्षिण में चौड़े हैं । (२१६) तथाहुः - हिमवंत सेल सिहरे वगर विदंदहो सलिल पुष्णो । दस जोअणावगाढो विच्छिन्नो दाहिणुत्तरओ ॥२१७॥ अन्य स्थान पर भी कहा है कि - हिमवंत पर्वत के शिखर पर एक जल से भरा हुआ सुन्दर पद्म सरोवर है, वह दस योजन गहरा और उत्तर दक्षिण में चौड़ा है । (२१७)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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