________________
(२१३) देवोऽत्र वृषभाभिख्य एक पल्योपम स्थितिः । महर्द्धिको विजयवत्तथास्य राजधान्यपि ॥१७७॥
इसके ऊपर वृषभ नामक देवता का निवास है । इस देव का एक पल्योपम का आयुष्य है। इसको विजयदेव समान महान समृद्धि है और इस की राजधानी भी उसके समान ही है । (१७७)
शैलोऽयं चित्रित इव चक्रिभिः जितभारतैः । काकिणीरत्नलिखितैः समन्तान्निजनामभिः ॥१७८॥
भरत क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने वाले चक्रवर्ती ने सर्वत्रः काकिणी रत्न से अपना नाम लिख कर मानो सम्पूर्ण पर्वत चित्रण किया हो इस तरह लगता है। (१७८)
नद्योऽष्टविंशतिरिह सहस्रा द्वयुत्तरा मताः ।
अमुष्य भरतक्षेत्रस्योर्वीशस्यांगनाइव ॥१७६॥
इस क्षेत्र में भरत क्षेत्र रूपी राजा की रानियां समान, अट्ठाईस हजार और दो नदियां आई है । (१७६).
.अरकाश्च षडप्यत्र सुषमासुषमादयः । सदा विपरिवर्तन्ते नियोगिनं इवेशितुः ॥१८०॥
इति भरत क्षेत्रम् ॥ यहां राजा के अधिकारी समान सुषमा सुषमा आदि छः आरे सदा परिवर्तनशील होते हैं । (१८०)
इस तरह से भरत क्षेत्र का वर्णन सम्पूर्ण हुआ। अथोत्तरार्द्ध. भरतपर्यन्त उत्तराश्रिते । जात्यस्वर्णमयो भाति हिमवान्नाम पर्वतः ॥१८१॥
इसके बाद उत्तरार्ध भरत - उत्तर के अंत में जातिवंत सुवर्णमय हिमवान् नामक पर्वत शोभायमान हो रहा है । (१८१)
स्पृशन् द्वाभ्यां निजान्तभ्यां पूर्वापरपयोनिधि । . योजनानां शत तुंगो भूमग्न । पंचविंशतिम् ॥१८२॥
इसके किनारे पूर्व समुद्र तक और दूसरे विभाग पश्चिम समुद्र तक लम्बे हैं। यह सौ योजन उंचा है, और पच्चीस योजन पृथ्वी में स्थिर रहा है । (१८२) ।