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________________ (२१४) योजनानां दसशती द्विपंचाशत्समन्विता । कला द्वादश विष्कम्भः पर्वतस्यास्य कीर्तितः ।।८३॥ इसकी चौड़ाई एक हजार बावन (१०५२) योजन तथा बारह कला, विष्कंभ पर्वत की कही है । (१८३) योजनानां पंचदश शतान्यथाष्टसप्ततिः । अष्टादश कलाश्चात्र शरः प्रोक्तो जितस्मरैः ।८४॥ .:. इस पर्वत का शर पंद्रह सौ अठहत्तर (१५७८) योजन और अठारह कला कहा है । (१८४). योजनानां सहस्राणि चतुर्विशतिरेव च । सद्वात्रिंशन्नवशती प्रत्यंचास्य कलार्द्धयुक १६५॥. इस पर्वत की जीवा चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस (२४६३२) योजन और आधा कला है । (१८५) .. धनुःपृष्टं योजनानां सहस्त्राः पंच विंशतिः । द्वे शतेंत्रिशद्रधिके चतस्वश्चाधिकाः कलाः ॥८६॥ इसका धनुः पृष्ट पचीस हजार दो सौ तीस (२५२३०) योजन एवं चार कला कहा है । (१८६) योजनानां सहस्राणि पंच त्रीणि शतानि च । सार्द्धानिवाहैकैकस्याध्याः पंचदशांशकाः ॥१८७॥ इसकी प्रत्येक 'बाहा' पांच हजार तीन सौ पचास (५३५०) योजन और साढे पंद्रह कला है । (१८७) कोटीद्वयं च लक्षाणि योजनानां चतुर्दश । षट् पंचाशत्सहस्राणि शतानि नव चोपरि ॥१८॥ एक सप्ततिरेवाष्टौ कलाश्च विकलादश । भूमीप्रतरगणितं निर्दिष्टं हिमवगिरेः ॥१८६॥ युग्मं । इस पर्वत की भूमि का प्रतर दो करोड़ चौदह लाख छप्पन हजार नौ सौ इकहत्तर (२,१४,५६६७१) योजन, आठ कला और दस विकला, हिमगिरि पर्वत का है । (१८८-१८६) " पणा
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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