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________________ (२१०) खण्ड प्रपाता गुफा के दक्षिण की ओर के द्वार से दक्षिण दिशा में गंगानदी के पश्चिम किनारे पर नौ निधान आए है । (१५७) इस तरह दक्षिणार्ध धारण का वर्णन पूर्ण हुआ। उदीच्यामथ वैताढयात् हिमवद् गिरि सीमया । स्यादुत्तरभरतार्द्ध पर्यंकासनसंस्थितम् ॥१५८॥ वैताढय पर्वत से उत्तर दिशा में उत्तर भरतार्द्ध आया है, इसकी सीमा हिमवंत पर्वत तक है और यह पर्यंकासन में रहा है । (१५८) अष्टात्रिंशे योजनाना द्वे शते त्रिकलाधिके । विष्कम्भतोऽथ बाहास्स्प्रत्येकं पार्श्वयोः द्वयोः ॥१५॥ योजनानां शतान्यष्टादश द्विनवतिस्तथा । सार्द्धाः सप्त कलाः क्षेत्रफलमस्याथ कीर्त्यते ॥६०॥ लक्षास्त्रिंशत् सहस्राणि द्वात्रिंशदथ चोपरि । शतान्यष्टौ योजनानामष्टा शीतिरथाधिका ॥१६१॥ कला द्वादश विकला एकादश प्रकीर्तिताः । उक्ता सामान्य भरतवत् शेषं तु शरादिकम् १६२॥ कलापकम् । इसकी चौड़ाई दो सौ साढ़े तीस योजन और तीन कला है । इसके दोनों तरफ से आई प्रत्येक ‘बाहा' अठारह सौ बयानवे योजन और साढ़े सात कला है, और इसका क्षेत्रफल तीस लाख बत्तीस हजार आठ सौ अट्ठाईस योजन बारह कला और ग्यारह विकला है । इसके शर आदि दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र में कह गये हैं, उस तरह सामान्य रूप से जानना । (१५६-१६२) नितम्बस्य हिमवतो दाक्षिणात्यस्य सन्निधौ । क्षेत्रेऽस्मिन्नन्तरे गंगा सिन्धु प्रपात कुण्डयोः ॥१६३॥ गिरिः वृषभ कूटाख्यः उच्चत्वे नाष्ट योजनः । द्वे योजने भू नि मग्नः चारू गोपुच्छ संस्थितः ॥१६४॥ युग्मं ॥ इस क्षेत्र में हिमवंत पर्वत की दक्षिण दिशा की ओर की मेखला के पास गंगा में सिन्धु प्रपात कुंड के बीच वृषभ कूट नामक पर्वत है । वह आठ योजन उंचा है तथा दो योजन पृथ्वी के अन्दर निमग्न है, और यह सुन्दर गो पुच्छ के आकार वाला है । (१६३-१६४)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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