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________________ (२०७) चौथे मंडल का आलेखन-चित्रन होता है । उसके बाद पूर्व दिशा की दीवार में छठे योजन में पांचवे मंडल का आलेखन है, इसी तरह उत्तर दिशा के द्वार के पश्चिम दिशा के किवाड़ पर पहले योजन में अड़तालीसवां मंडल, और उत्तर की ओर द्वार के पूर्व दिशा के किवाड़ पर दूसरे योजन में उनचासवां मंडल आलेखन है एक दीवार पर पच्चीस और उसके सन्मुख की दूसरी दीवार पर चौबीस ये समग्र उनचास मंडल होते हैं।' दक्षिणात्तोड्डुकात् सप्तदशभिः योजनैः पग । अस्त्युन्मग्नजला नाम नदी त्रि योजनातत ॥१४०॥ द्वादश योजनायामा पूर्वभित्ति विनिर्गता । विभिद्य पश्चिमा भित्ति प्रविष्टा सिन्धु निम्नगाम् ॥१४१॥ युग्मं । दक्षिण दिशा के तोडक से सत्तर योजन छोड़कर उन्मग्नजला' नाम की नदी आती है, वह तीन योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी है और वह पूर्व की तरफ की दीवार में निकल कर पश्चिम की दीवार को भेदन कर सिन्धु नदी में मिलती है । (१४०-१४१) अस्यां पतति यत्किंचित् दृषत्काष्टनरादिक् । तत् सर्वभिराहत्य वहिः प्रक्षिप्यते स्थले ॥१४२॥ इस नदी का स्वभाव ऐसा है कि - इसमें पाषाण, लकड़ी या मनुष्य आदि जो भी कुछ गिरता है, उन सबको उस नदी का जल, बाहर जमीन पर फैंक देता है । (१४२) ततः परं योजनयोर्द्वयोरतिकमे परा । स्यान्निमग्नजला नाम नदी त्रियोजनातता ॥१४३॥ द्वादश योजनायामा पूर्व भित्ति विनिर्गता । प्रत्यग भित्तिं प्रविभिद्य सिन्धुं विशत्यसावपि ॥१४४॥ इसके दो योजन के बाद दूसरी 'निमग्न जला' नाम की नदी आती है, वह भी तीन योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी है, और पूर्व की ओर दीवार में से निकल कर पश्चिम तरफ की दीवार को भेदन कर सिन्धु नदी में मिलती है । (१४३-१४४) अस्यां पतति यत्किं चत्तृण काष्ट नरादिकम् । अधो मज्जति तत्सर्वमीदक स्वभावमेनयोः ॥१४५॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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