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उपर्येषामथै कै कः स्यात्प्रासादावंतसकः । रालिकः क्रोशतुंगोऽर्द्धकोशं च विस्तृतायतः ॥१२०॥
प्रत्येक शिखर पर एक महान रत्नमय प्रासाद आया है । उसकी ऊँचाई एक कोस और लम्बाई-चौड़ाई अधेि कोश है । (१२०)
इदं जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वृत्ति बृहत् क्षेत्र समासभि प्रापेण।
"श्री उमास्वाति कृते जम्बूद्वीप समासे तुअमी प्रासादावतंस काः क्रोश दैर्ध्यविस्ताराः किं चिन्यूनतदुच्छ्रया उक्तासन्ति ॥"
"यह अभिप्राय जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति टीका तथा वृहत् क्षेत्र समास के आधार पर कहा है । परन्तु श्री उमा स्वाति वाचक कृत जम्बूद्वीप समास में इस तरह कहा है कि इन प्रासाद की लम्बाई-चौड़ाई एक कोश की है और ऊँचाई एक कोस से कुछ कम है।"
तस्य प्रासादस्य मध्ये महती मणि पीठिका । धनु :पंचाशतायाम व्यासा तदर्द्धमेदुरा ॥१२१॥
प्रत्येक प्रासाद के मध्य भाग में एक मोटी मणि पीठिका है, उसकी लम्बाई-चौड़ाई पांच सौ धनुष्य और मोटाई अढाई सौ धनुष्य की है । (१२१)
उपर्यस्या रत्नमयं सिंहासनमनुत्तरम् । ... तत्तत्कूटस्वामियोग्यं परिवारासनैर्वृतम् ॥१२२॥
प्रत्येक मणि पीठिका पर उस शिखर के स्वामी के योग्य और उत्तम परिवार के आसनो से घेरा हुआ सिंहासन आया है । (१२२) ..
यदा स्व स्व राजधान्याः कूटानां स्वामिनः सुराः । अत्रायान्ति तदैतस्मिन् प्रासादे सुखमासते ॥१२३॥
जब जब उस शिखर के स्वामी देव अपनी राजधानी में से यहां आते है तब वे इस प्रासाद में आनंदमय रहते है । (१२३)
मेरोदक्षिणतोऽसंख्य द्वीपाब्धीनामतिक्रमे । जम्बू द्वीपेऽपरत्रैषां राजधान्यो यथायथम् ॥१२४॥
इन देवों की राजधानियां मेरूपर्वत से दक्षिण में असंख्य द्वीप समुद्रों को छोड़कर अन्य जम्बूद्वीप में आयी है । (१२४)