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तथाहिचंदण कलसाभिंगारगा आयसंगा य थाला य । पाई ओ सुपइट्ठा मण गुलीया वाय करगा य ॥१४॥ चिता रयण करंड गह यगयनर कंठगा य चंगेरी।
पडलग सीहा सण छत्त चामरा समुग्गय झया य ॥१५॥ ___ तथा में नीचे की वस्तुएं समझना - चंदन के कलश, उपरांत टोटीदार लुटिया (कलश), दर्पण, थाल, रकेबी सुप्रतिष्ट (डब्बा) मनोगुली, बीजणा रत्नजड़ित टोकरी, अश्व हस्ती तथा मनुष्य की मुखाकृति, चंगेरी पट्टे, सिंहासन छत्र, चामर, डब्बे तथा ध्वजा । (११४-११५)
तथा -खंडप्रपात कूटे स्यान्नृत्तमालः सुरो विभुः! ! ... . सप्तमे कृतमालाश्च स्यातमिस्रगुहाभिधे ॥१६॥
वैताढय पर्वत के नौ शिखर में से प्रथम सिद्धायतन शिखर सम्बन्धी सर्व बातों का वर्णन किया। अब इसके शेष शिखरों के विषय में कहते हैं - तीसरे खंड प्रपात नाम के शिखर का नृतमाल नामक देव अधिपति है और सातवा तमिस्र गुहा नामक शिखर का कृतमाल नामक देव अधिपति है । (११६)
षण्णां च शेष कूटानां कूट नाम. समाभिधाः । सुराः कुर्वन्त्याधिपत्यं सर्वे पल्योपमायुषः ॥११७॥
शेष छह शिखरों का उस-उस शिखर के समान नाम वाले देव अधिपति है । ये सब देव एक पल्योपम के आयुष्य वाले होते हैं । (११७)
एतेषां च परीवारो देवी सामानिका दिकः । तत्तदासनरीतिश्च सर्व विजयदेववत् ॥११॥
इन देवों की देवियां सामानिक देव आदि परिवार तथा इनके आसन की अवस्थिति आदि सब विजयदेव के समान समझ लेना । (११८)
पूर्णभद्रं माणिभद्रं कूटं वैताढयनामकम् । त्रीण्येतानि स्वर्णजानि रालि कान्यपराणि षट् ॥१६॥ .
पूर्णभद्र मणिभद्र और वैताढय नामक तीन शिखर सुवर्णमय है और शेष छः रत्नमय है । (११६)