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________________ (१८८) यद्वेदं भरते क्षेत्रप्रमाणं योजनादिकम् । नवत्याढयशतगुणं योजनानां हि लक्षकम् ॥२१॥ .. उसके बाद का रम्यक क्षेत्र सोलह विभाग समान है । रूक्मि पर्वत आठ विभाग समान है। हैरण्यवंत क्षेत्र चार विभाग के सदश है। शिखरी पर्वत दो विभाग जितना है। और ऐरावत क्षेत्र एक विभाग जितना है । अतः यह सम्पूर्ण भरतक्षेत्र के समान है । इस तरह कुल एक सौ नब्बे विभाग होकर एक लाख योजन प्रमाण का होता है। इस प्रकार एक लाख योजन को. १६० का भाग करते जितने योजन आते हैं, उतने योजन का भरत क्षेत्र का प्रमाण समझना । अर्थात् यह ५२६ योजन और छः कला का भरत क्षेत्र होता है । (१६-२१). जम्बू द्वीपस्य विष्ककम्भो यथैवं लक्षयोजनः । . . एवमायामोऽपि लक्षं योजनानां भवेद्यथा ॥२२॥ .. जम्बू द्वीप की चौड़ाई के समान लम्बाई भी एक लाख योजन की है वह इस तरह :- (२२) सहस्राः पंच वनयोः व्यासः पूर्वापरस्थयोः । योजनानां चतुश्चत्वारिंशान्यष्टौ शतानि च ॥२३॥ पण्णमन्तर्नदीनां च पंचाशा सप्तशत्यसो । चतुःसहस्री विष्कम्भो वक्षस्काराष्टकस्य च ॥२५॥ मेरूः दश सहस्रोरूः भद्रसालस्य चायतिः । सहस्राणि चतुःचत्वारिंशत् पूर्वापरस्थितेः ॥२६॥ एषां संकलने लक्षं योजनानां भवेदिति । वक्ष्यमाणाविदेहानामायामोऽप्येवमूह्यताम् ॥२७॥ पूर्व और पश्चिम के दोनों बन मिलाकर पांच हजार आठ सौ चवालीस योजन होता है। सोलह विजय पैंतीस हजार चार सौ छः योजन है । छ: अन्तर्नदियों सात सौ पंचास योजन है । और वृक्षस्कार पर्वत चार हजार योजन के होते हैं । मेरू पर्वत दस हजार योजन का है, एवं पूर्व और पश्चिम दिशा में रहा भद्रशाल वन चवालीस हजार योजन का है । इस तरह सर्व मिलाकर कुल जोड़ एक लाख योजन होता है । यह जम्बू द्वीप की लम्बाई हुई। इसके बाद जो बाते आने वाली है वह महाविदेह की लम्बाई भी इस तरह समझना । (२३-२७)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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