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कला का जो उन्नीसवां विभाग है वह विकला है, और ऐसे उन्नीस विकला का एक कला होता है । (१३)
इस तरह की परिभाषा है। व्यासो भरतहिमवतादिक्षेत्रमहीभृताम् । स्थानद्विगुणितो ज्ञेय आविदेहमतः पुनः ॥१४॥ यथारोहावरोहेण विष्कम्भोऽर्द्धार्द्धहानितः । . भवेदेवं ऐरवते विष्कम्भो भरतोपमः ॥१५॥
विदेह तक जो भरत और हिमवान आदि क्षेत्र और पर्वत है उनका व्यास एक दूसरे से दोगुना जानना, और उसके बाद के क्षेत्र और पर्वत आधे-आधे हो जाते है । अत: ऐरावत क्षेत्र का व्यास भरत क्षेत्र के व्यास समान होता है । (१४-१५) तच्चैवम् - चेन्जम्बूद्वीपविष्कम्भे भागा नवति युक्त शतम् ।
कल्प्यन्ते तत्र भरतमेक भागमितं भवेत् ॥१६॥ इत: स्थानद्विगुणत्वात् द्वौ भागौ हिमवदगिरिः । हैमवंत च चत्वारोऽष्टौ महाहिमवगिरिः ॥१७॥ षोडशांशा हरिवर्ष द्वात्रिंशन्निषधाचलः । विदेहाश्च चतुःषष्टिः द्वात्रिंशन्नीलवान्नगः ॥१८॥
वह इस तरह से :- यदि जम्बू द्वीप के व्यास के एक सौ नब्बेवें भाग की कल्पना करें, तो भरत क्षेत्र का व्यास एक भाग समान है, उसके बाद दो गुना होने से हिमवंत पर्वत, दो विभाग जितना (समान) समझना। उसके बाद का हेमवंत क्षेत्र चार विभाग समान जानना । उसके बाद महाहिमवंत पर्वत आठ विभाग वाला है। हरिवर्ष क्षेत्र सोलह विभाग समान है। निषेध पर्वत बत्तीस विभाग (गुना) है । और विदेह क्षेत्र चौंसठ विभाग के समान है। इसके बाद वापिस मान उतरते, आधाआधा होते जाता है, उसके बाद का नीलवान पर्वत बत्तीस विभाग समान समझना। (१६-१८)
षोडशांशा रम्यकाख्यं भागा रूक्मीनगोऽष्ट च । चत्वारो हैरण्यवंतद्वौ भागौ शिखरी गिरिः ॥१६॥ एक ऐरावत क्षेत्रम् नवत्या च शतेन च । भागैरेवं योजनानां लक्षमेकं समाप्यते ॥२०॥