________________
(१७६) सुवर्ण की, पत्ते वैदूर्य रत्न के, पल्लव सुवर्ण के है और पुष्प और फल रत्नो के
कहे है । (२०३) . अत्र स्कंधविडिमादिमानं तु वक्ष्यमाण जम्बूवृक्ष वत् ज्ञेयम ॥
यहां स्कंध विडिम आदि का मान आगे वर्णन करने में आने वाले जम्बू वृक्ष के स्कंध आदि अनुसार समझना ।
तेषां च चैत्य वृक्षाणां पुरतो मणि पीठिका। . योजनायाम विष्कम्भा योजनार्द्ध च मेदुरा ॥२०॥
इन चैत्य वृक्षों के आगे एक योजन लम्बी-चौड़ी और आधा योजन मोटी मणि पीठिका है । (२०५)
महेन्द्रध्वजमेकै कः तास्वर्द्धकोशविस्तृतः । सार्द्धसप्तयोजनोच्चः पताकोछत्रमंडितः ॥२०६॥:.
इस पीठिका के ऊपर साढ़े सात योजन ऊँचा और एक कोस चौड़ा तथा पताका और छत्र से सुशोभित एक-एक इन्द्र ध्वज आया है । (२०६) ।
इदं जीवभिगम सूत्र वृत्तौ । क्षेत्र समास वृहद् वृत्तौ तु ते महेन्द्र ध्वजाः प्रत्येक अष्ट योजनोच्छ्रयाः रत्युक्तम् ॥ .
यह अभिप्राय जीवाभिगम सूत्र का है । क्षेत्र समास की बड़ी टीका में.तो महेन्द्र ध्वज की ऊँचाई आठ योजन की कही है।
तेषां महेन्द्रध्वजानां पुरः प्रत्येकमेकिका । नन्दा पुष्करिणी पद्मवेदिकावनवेष्टिता ॥२०७॥
प्रत्येक महेन्द्र ध्वज के आगे पद्मवेदिका और बाग़ से युक्त एक-एक पुष्करिणी होती है । (२०७)
योजनानि दशोण्डाः ताः सार्द्धा द्वादश योजनीम्। ...
आयता षड् योजनानि क्रोशाधिकानि विस्तृताः ॥२०८॥
प्रत्येक पुष्करिणी दस योजन गहरी, साढ़े बारह योजन लम्बी तथा छः योजन और एक कोस चौड़ी है । (२०८)
एवं सुधर्म सभाया वहिर्भागो निरूपितः ।। अर्थतस्या मध्य भागो यथाम्यनायं निरूप्यते ॥२०॥