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तासु प्रत्येकमेकैका जिनमूर्तिः विराजते । पंचचापंशतोतुंगा शाश्वती स्तूप संमुखी ॥१६६॥
उस पीठिका के ऊपर स्तूप के सन्मुख श्री जिनेश्वर भगवान की पांच सौ धनुष्य ऊँची एक-एक शाश्वती प्रतिमा विराजमान है । (१६६)
तथोक्ते जीवाभिगम वृत्तौ जिनोत्सेधं उत्कर्षतः पंच धनुः शतानि जघन्यतः सप्तहस्तः । इह तु पंच धनुः शतानि संभाव्यन्ते ॥
इस सम्बन्ध में जीवाभिगम सूत्र की टीका में कहा है कि - श्री जिनेश्वर भगवान की उत्कृष्ट ऊँचाई पांच सौ धनुष्य और जघन्य से सात हाथ की होती है । इसमें यहां पांच सौ धनुष्य संभव होता है ।
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ऋषभो वर्द्धमानश्च चन्द्रानन जिनेश्वरः ।
वारिषेणश्चेति नित्यानामानो नाकिभिर्नुताः ॥ २००॥
शाश्वत जिनेश्वर के नाम चार कहे हैं। वह इस प्रकार हैं- १- ऋषभदेव
२- वर्द्धमान स्वामी ३ चन्द्रानन ४- वारिषेण । ( २०० )
पुरस्तासां पीठिका नामेकैका मणि पीठिका ।
स्थूलैक योजनं द्वे च योजने विस्तृतायता ॥२०१॥
इन पीठिकाओं के आगे एक योजन मोटी और दो योजन लम्बी-चौड़ी एक-एक मणि पीठिका है । (२०१)
तासां प्रत्येकमुपरि स्यादष्ट योजनोच्छ्रयः ।
चैत्य वृक्षः ते च सर्वे नानातरूभिरावृताः ॥ २०२ ॥
इन प्रत्येकं पीठ पर आठ-आठ योजन ऊँचा चैत्य वृक्ष है और इसके आसपास भी अन्य विविध प्रकार के वृक्ष मौजूद हैं । (२०२)
वज्रमूलारिष्ट कंदा वैदूर्य स्कन्ध बन्धुराः । सद्रुप्य विडिमाः स्वर्णशाला रत्नप्रशाखकाः ॥२०३॥ सुवर्ण वृन्तवैदूर्य मयपत्रमनोहराः जाम्बूनदपल्लवाश्च रानैः पुष्पफलैः भृताः ॥२०४॥ युग्मं ।
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इन वृक्षों का मूल वज्र रत्नमय है कंद अरिष्ट रत्न के है थड - स्कंध वैदूर्य रत्न का है, विडम, चान्दी की है, शाखा सुवर्ण की है, प्रशाखा रत्न की, कलियां,