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(१७४) मध्ये चाक्षपाटकानामेकैका मणि पीठिका । अर्ध योजन बाहल्या योजनं विस्तृतायता ॥१६३॥ तासां प्रत्येकमुपरि सिंहासनमुरु स्फुरत् । तेषां प्रेक्षा मंडपानां पुरतोऽथ प्रकीर्तिता ॥१६४॥ एक योजन बाहल्या द्वे च ते विस्तृतायता । रचिता विविधैः रत्नैः एकैका मणि पीठिका ॥१६५॥ युग्मं ।
इस अक्षपाट के अन्दर एक योजन लम्बी-चौड़ी और आधा योजन मोटी मणि पीठिका है और उस मणि पीठिका के ऊपर सुन्दर सिंहासन है । इन प्रेक्षा मंडपों के आगे एक योजन मोटी और दो योजन लम्बी-चौड़ी विविध रत्नमय एकएक मणि पीठिका है । (१६५)
क्षेत्र समास वृहद् वृत्तौ तु इयं द्वियोजनायाम विष्कम्भ बाहल्या उक्ता॥
क्षेत्र समास की बृहत वृत्ति के अभिप्राय में तो इस पीठिका की लम्बाई : चौड़ाई और मोटाई दो योजन की है।
साधिके योजने तुंग स्तूपः तदुपरि स्मृतः । देशोने च योजने द्वे प्रत्येकं विस्तृतायताः ॥१६६॥
इस मणि पीठ पर स्तूप है उसकी ऊँचाई दो योजन से अधिक है और लम्बाई चौड़ाई में दो योजन से कुछ कम है । (१६६)
क्षेत्र समास वृहद वृत्तौ तु अयं देशोन द्वि योजनायाम विष्कम्भः परिपूर्ण द्वियोजनोच्च उक्तः। .
. क्षेत्र समास की वृहद वृत्ति में तो इस स्तूप की लम्बाई-चौड़ाई दो योजन से कुछ कम है और ऊँचाई सम्पूर्ण योजन की है। ..
तेषां च चैत्यस्तूपानामुपयतिन्वते श्रियम् । रात्नानि मंगलान्यष्टौ चैत्य स्तूप पुरः पुनः १६७॥ योजनायाम् विष्कम्भा भवेदिक्षु चतसृषु । अर्ध योजन बाहल्या प्रत्येकं मणि पीठका ॥१६८॥ युग्मं ॥
इस स्तूप के ऊपर रत्न, अष्ट मंगल शोभायमान है और इसके आगे चारों दिशा में एक योजन लम्बी-चौड़ी तथा आधा योजन मोटी प्रत्येक मणि पीठिका है। (१६७-१६८)