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________________ (१७२) इन चार के चारों तरफ भी उससे प्रमाण में आधे चार चार प्रासाद हैं ये आखिर के हैं । जो परिवार के भी परिवार कहलाते हैं उनकी मूल प्रासाद से चौथाई भाग की ऊँचाई तथा लम्बाई-चौड़ाई जानना । (१७८-१७६) . एतेऽपि च स्वार्द्धमानैश्चतुर्भिरपरैर्वत्ताः । चतुर्दिशं स्युरित्येवं प्रत्येकमेकविंशतिः ॥१८०॥ इनके चारों तरफ में भी प्रत्येक दिशा में चार-चार प्रसाद हैं अतः प्रत्येक दिशा में इक्कीस प्रासाद होते हैं । (१८०) . ... .... परिवारपरीवारपरीवारास्तु मौलतः । विष्कम्भायामतुंगत्वैः अष्टमांशमिता मताः ॥१८१॥. परिवार के परीवार और इनका भी परिवार इस तरह ये प्रासाद मूल प्रसाद से प्रमाण में एक अष्टमांश जितने है । (१०१) . . पंचा शीतिरमी सर्वे जीवाभिगम पुस्तके । ... वृत्तौ तु तुर्या प्रासाद परिपाटी निरीक्ष्यते ॥१८२॥ इस तरह से चार दिशा के चौरासी और एक मूल प्रासाद मिलाकर कुल पचासी प्रासाद जीवभिगम सूत्र में कहे है । परन्तु इसकी वृत्ति में तो प्रासाद की एक चौथी श्रेणि भी कही है । (१८२) तथाहि- परिवार परिवार परीवारा अपि स्फुटम्। । चतुर्भिरपरैमौलात् षोडशांशमितैर्वृताः ॥१३॥ तदैकैकस्या दिशायां पंचाशीतिर्भवन्त्यतः ।। शतानि त्रीण्येकचत्वारिंशानि सर्व संख्यया ॥१४॥ और वह इस प्रकार से कहा है - परिवार के परिवार और उसका भी परिवार रूप जो प्रासाद कहे हैं उसके प्रत्येक के आस-पास भी चार-चार प्रासाद आए है, जो मूल प्रासाद से प्रमाण में एक सोलहवांश सदृश हैं । इस तरह प्रत्येक दिशा में ऐसे पचासी होते हैं । अतः चार दिशा में मिलाकर तीन सौ चालीस होते हैं और इसमें एक मूल प्रासाद मिलाकर तो कुल तीन सौ इक्तालीस होते हैं, यह चौथी श्रेणि की गिनती होती है । (१८३-१८४) बिना च मूल प्रासादं सर्वेऽप्येते विभूषिताः । एकैकेनैव विजययोग्यसिंहासनेन च ॥१८॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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