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(१७०) उस राजधानी के मध्य भाग में सुन्दर स्थान है वहां पर एक उत्तम सुवर्णमय पीठ बंध है । (१६३)
योजनानां शतान्येष द्वादशायत विस्तृतः । कोशार्द्धमेदुरः पद्मवेदिका वनवेष्टितः ॥१६॥
वह पीठ बंध बारह सौ योजन लम्बा, चौड़ा और आधा कोश मोटा है और इसके आस-पास पद्मवेदिका और बाग शोभ रहा है । (१६४)
त्रि सोपान कमेमैकं द्वारं चारू विराजते । ... मणीमयं तोरणेन तत्र दिक्षु चतसृषु ॥१६॥
चारो दिशाओं के चार द्वारों में तोरण सहित तीन-तीन सुन्दर मणीमय सौपान शोभ रहे हैं । (१६५) .. मध्येऽस्य पीठबन्धस्य भूमिभागेऽस्ति बन्धुरें। .. महानेकः तपनीयमयः प्रासादशेखरः ॥१६६॥ द्वाषष्टिं योजनान्य धिंकानि.स समुन्नतः । उच्चत्वस्यार्द्धमानेन भवत्यायत विस्तृतः ॥१६७॥ .
इस पीठ बंध के मनोहर भूमिभाग के अन्दर एक महान सुन्दर सुवर्णमय प्रासाद आया है । उस प्रासाद का साढ़े बासठ योजन ऊँचा और सवा इक्तीस योजन लम्बा-चौड़ा विस्तार है । (१६६-१६७)
तस्य प्रासादस्य मध्ये महती मणिपीठिका । सा द्विगब्यूतवाहल्या योजनं विस्तृतायता ॥१६८॥
इसके मध्य विभाग में दो कोस मोटी, और चार कोस लम्बी-चौड़ी एक बड़ी मणिमय पीठिका है । (१६८) ..
तस्या मणिपीठिकाया मध्ये सिंहासनं महत् । वृतं विजयदेवाह सामानिकादिकासनैः ॥१६६॥ ..
उस मणि पीठिका के मध्य भाग में विजय देव के योग्य एक बड़ा सिंहासन है उसके चारों तरफ इसके सामानिक देव आदि के सिंहासन आये हुए हैं । (१६६) तच्चैवम् -मूल सिंहासनाद्वायूत्तरे शानदिशा त्रये ।
सामानिकानां चत्वारि सहस्राण्यांसनानि वै ॥१७॥