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________________ (१६८) शतानि पंच द्वाराणामेवं स्यः सर्व संख्यया । . . विजयद्वारवत् सर्वमेषां वर्णनमीरितम् ।।१४६॥ ... ये सब मिलाकर पांच सौ द्वार की संख्या होती है । इसका सर्व स्वरूप विजयद्वार के अनुसार समझना । (१४६) किन्त्वियान् विशेषःद्वाषष्टिं योजनान्युच्चं सार्धानि द्वारमेककम् । योजनानि सपादान्येकत्रिशतं च विस्तृतम् ॥१५०॥ . . ये च प्रकंठकाख्ये पीठे तत्रोदिते तयोरिह तु । . . पंचदशयोजनानि च साधौं क्रोशौ च तुंगत्वम् ॥११॥ एक त्रिशद्योजनानि क्रौशश्चायतिविस्तृती । प्रत्येकमेषामुपरि स्युः प्रासादावतंसकाः ॥१५२॥ फर्क इतना है कि - ये एक एक द्वार साढ़े बासठ योजन ऊँचे है, और. सवा इक्तीस योजन चौड़े है, वहां प्रकंडक नामक जो दो पीठ कहे है, उनकी यहां ऊँचाई पंद्रह योजन और अढाई कोश की है और लम्बाई-चौड़ाई सवां इक्तीस योजन की है । (१५०-१५२) एकत्रिंशद्योजनानि सक्रोशानि समुच्छ्रिता । उच्छ्यार्थेन ते सर्वे प्रासादा विस्तृतायताः ॥१५३॥ उन सब के ऊपर बड़े प्रासाद है वे इक्तीस योजन तथा एक कोश ऊँचे और इससे आधे लम्बे, चौड़े हैं । (१५३) द्वारस्यैकै कस्य नातिदूरासन्ने भुवस्तले । . सप्तदश सप्तदश भौमाः प्रासाद शेखराः ॥१५४॥ तेषां मध्ये नवमे नवमे सिंहासनं विजय मरूतः । सामानिकादिसुरगणभद्रासनपरिवृतं भाति ॥१५॥ प्रत्येक द्वार के नजदीक की भूमि में लगभग सत्रह-सत्रह भूगर्भ प्रासाद है, उसके अन्दर नौवे-नौवें प्रासाद में विजय देव का सिंहासन है उस सिंहासन के आस-पास सामानिक आदि देवों के भद्रासन उपस्थित है । (१५४-१५५) अष्ट स्वष्टसु भौमेषु स्थितेषु भय तस्ततः । . अस्ति प्रत्येक मे कैकं रत्न भद्रासनं महत् ॥१५६॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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