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(१६४) प्रत्येक तोरण पर सिंहासन, छत्र, चमर और दस प्रकार के डिब्बे, इन सर्व - के दो-दो जोड़ा होता है । (१२३)
समदगक संग्रह गाथा चेयम्। तेल्ले कोट्र समुग्गे पत्ते चोए य तगर एला य। . हरिआले हिंगुलए मणोसिला अंजण समुग्गे ॥१२४॥
उन दस डिब्बों में तेल कपूर काचली, पत्ते, चोल, तगर, इलायची, हलताल हिंगलोक, मनशील और अंजनये दस वस्तुएं हैं । (१२४) ।
तथात्र विजय द्वारे शतमष्टाधिकं ध्वज़ाः । प्रत्येकं चक्रादि चिह्वा दशधा ते त्वमी मताः ॥१२५॥ . चक्रमगगरूडसिंहाः पिच्छ वृकच्छत्रवर्यहर्यक्षाः । वृषभचतुर्दन्तगजाः सर्वऽशीत्यन्वितः सहस्रम् ॥१२६॥ ।
इस विजय द्वार पर एक सौ आठ ध्वजाएं लहरा रही हैं, प्रत्येक पर चक्र, हरिण, गरूड़, सिंह, पिच्छ, वरूण, छत्र अश्व वृषभ और चार दांत वाला हाथी इस तरह दस-दस चिन्ह होते हैं । (१२५-१२६) . .
विशिष्टस्थानरूपाणि भौमानि नव संख्यया । विजयद्वारस्य पुरः स्युः भोग्यानि तदीशितुः ॥१२७॥
इस विजय द्वार के आगे, इसके स्वामी के उपयोग के लिए विशिष्ट स्थान रूप, नौ भौरा-तहखाना है । (१२७) .
__ तथाहुः जीवभिगमे । विजयस्स णं दारस्स पुरओ नव भोमा पण्ण्त्ता इत्यादि ॥समवायांगे तु विजय स्स णंदारस्स एगमेगाए वाहाए नव नव भोमा पण्णता इति दृश्यते ॥ तदत्र तत्वं सर्व विद्वद्यम् ॥
यह अभिप्राय जीवभिगम सूत्र में कहा है । समवायांग सूत्र में तो उसके एक एक बाहा में नौ-नौ भौरे हैं इस तरह कहा है । इसमें सत्य क्या है ? वह केवली भगवंत जानें।
मध्ये च तेषां भौमानां पंचमे सपरिच्छदम् । सिंहासनमधीशस्यान्षु भद्रासनानि च ॥१२८॥
इन नौ में से पांचवे भौरे में इसके अधिपति के परिवार वाला सिंहासन है और शेष आठ में भद्रासन है । (१२८)