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________________ (१६३) उसके सभा मंडप में दो-दो तोरण लगे हैं और उसके आगे के भाग में दो दो पुतलियां लगी है । (११६) तथा च - द्वौ नागदन्तावश्वेभनरकिंपुरुषांगिनाम् । कीन्नरोरगगन्धर्व वृषभाणांयुगानि च ॥११७॥ और वहा गजदंत घोडा, हाथी, पुरुष, किन्नर, सर्प, गन्धर्व और वृषभ (बैल) आदि के जोड़े शोभ रहे हैं । (११७) वीथयः पंक्तयश्चैषां नित्यं कुसुमिता लताः । पद्मनागाशोकलताः चम्पकाम्रादयोऽपि च ॥११८॥ वहां हमेशा फूल युक्त, नागलता, अशोक लता, चम्पक लता आदि लताएं तथा आम्रवृक्ष भी होते हैं । (११८) मांगल्य कलशाभंगारकाः तथात्मदर्शकाः । स्थालानि साक्षतानीव पात्र्यः फलभृता इव ॥११६॥ मंगल कलश झारी (सुराही) दर्पण, अक्षत का थाल और फल भरा पात्र भी वहां उपस्थित रहते हैं । (११६) . सवाषधि प्रसाधन भाण्डभृताः सुप्रतिष्ठकाश्चैव। पीठात्ममनोगुलिका युताः फलकनागदन्ताद्यैः ॥१२०॥ सर्व प्रकार की औषधियां और अंगार के साधनों के डिब्बों से भरे हुए तथा तखता और नागदन्त आदि से युक्त पीठ वाले चौतरे भी वहां पर शोभते हैं । (१२०) रात्नाः करण्डकाः राना हयकण्ठादयोऽष्ट च । चंगेर्यः तेष्वष्टविधाः पटलान्यपि चाष्टधा ॥१२१॥ तथाहि - पुष्पैः माल्यैः चूर्णगन्धैः वस्त्रसिद्धार्थ भूषणैः । __ लोमहस्तैश्च सम्पूर्णाः चंगेर्यः पटलानि च ॥१२२॥ वहां आठ प्रकार के रत्नकरंडक (रत्न टोकरी) हयकंठा दिक (घोडे के कंठ आकृति समान रत्न विशेष) भी हैं, उसमें पुष्प, माला, चूर्ण, सुगन्धी पदार्थ, वस्त्र, सरसों, आभूषण और पिच्छियों से सम्पूर्ण आठ चंगेरी और आठ पटल भी है । (१२१-१२२) सिंहासनातपत्रे चमराणि समुद्गकाश्च दशभेदाः । प्रतितोरणमेतेषा द्वयं द्वयं भवति सर्वेषाम् ॥१२३॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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