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तथा द्वौ द्वौ नागदन्तौ मुक्तादामाद्यलंकृतौ । तयोरूर्ध्वं पुनः द्वौ द्वौ धूप घटयन्वितौ च तौ ॥११०॥
वहां पर धूपदानी और मुक्ताफल की माला आदि से विभूषित दो-दो नागदन्ती (खूटियां) है। ... सांक्षादिव स्वर्गिकन्ये द्वे द्वे च शालभंजिके ।
द्वौ द्वौ च जाल कटकौ द्वे द्वे च घण्टे शुभस्वरे ॥१११॥...
वहां पर साक्षात् देवकन्या समान दो दो पुतलियां हैं । दो-दो जाल कटक (तार सूत आदि की बनी चटाई) है और सुन्दर नाद् करने वाले दो -दो घंट है । (१११)
नाना द्रुकिसलाकीर्णे द्वे द्वे च वन मालिके । । भमद् भ्रमरझंकारगीतारवमनोरमे ॥११२॥... आत्मदर्शाकृती द्वौ द्वौ पीठौं प्रकंठकाभिधौ । तौ च द्वि योजनस्थूलौ चतुर्योजन विस्तृतौ ॥११३॥
इसके उपरांत विविध प्रकार के कुपंल से युक्त तथा आस-पास भ्रमण करते भौरे के ,-, झंकार रूपी गीत के शब्द से मनोहर, दो-दो बनमालाएं है । दर्पण के आकार के प्रकंठ नामक दो-दो पीठ है, जो दो योजन मोटी और चार योजन चौड़े हैं । (११२-११३)
चत्वारि योजनान्युच्चो योजनद्वयविस्तृतः । तेषु प्रत्येकमेकैकः प्रासादोऽस्ति मनोरमः ॥१४॥
उस प्रत्येक पीठ पर चार योजन ऊँचा और दो योजन चौड़ा एक-एक मनोहर प्रासाद है । (११४)
प्रसादस्ते तुङ्गशृङ्गाः ध्वजच्छत्रमनोहराः । सिंहासनैः सविजयदूष्यैः विराजितान्ताराः ॥१५॥
इन प्रासादों के ऊँचे शिखर हैं, उसके ऊपर मनोहर ध्वजाएं और छत्र शोभायमान हो रहे हैं और इसके अन्दर विजयदेव के इष्य युक्त सिंहासन सुशोभित हो रहे हैं । (११५)
आस्थान स्थानयोः किंच द्वे द्वे स्तः तोरणे तयोः।। तोरणानां पुरः शालभंजिकानां द्वयं द्वयम् ॥११६॥