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तत्रेदं विजयं भूमिप्रदेशे वनिर्मितम् ।
भूमेरूज़ रिष्टरत्नमयमुक्तं जिनेश्वरैः ॥६६॥ .
यह विजय द्वार पृथ्वी प्रदेश के अन्दर वज्रमय है, और ऊपर के भाग में रिष्ट रत्नमय है ऐसा जिनेश्वर प्रभु ने कहा है । (६६) .
स्तंभा सर्वत्र वैडूर्यवर्यरत्नविनिर्मिताः । पंच वर्णैः मणीरलैः निर्मितं तत्र कुटिमम् ॥६७in..
इसके स्तंभ श्रेष्ठ वैडूर्य रत्न से बने हैं और फर्श आदि पंच वर्ण मणि और रत्नों से बना हुआ है (६७) __ हंसगर्भरत्नमयी देहल्यथेन्द्रकीलकः ।
गोमेय रत्नघटितो द्वारशाखे तथात्र च ॥८॥ लोहिताख्यरत्नमय्यौ परिधो वज्रनिर्मितः ।... कपाटे अपि वैय॑मये प्रोक्ते जिनेश्वरैः ॥६६॥
उसकी देहली हंस गर्भ रत्नो की है, तथा इसका इन्द्र कीलक गोमेय रत्न का बना है, इसके दरवाजे की चौखट लोहित रत्न की है और परिध वज्रमय है और इसके दरवाजे वै_रत्न के बने हैं । (६८-६६)
नानामणिमये तत्र कपाटचूंलिकागृहे । . ज्योतीरसरत्नमयमुत्तरंग · निरूपित् ॥१०॥
दरवाजों की दोनों चूलिका विविध प्रकार के मणियों की अंतरंग ज्योतिरस रत्नमय कही है।
विजयस्यो परितनो भागो भाति विभूषितः । . रत्लभेदैः षोडशभिः ते चामी कथिताः श्रुते ॥१०॥ .रत्तं वज्रं वैद्य लोहिताक्षे मसारगल्लं च । ..
अपि हंसगर्भपुलके सौगन्धकमंजनं रजतम् ॥१०२॥ ज्योतीरसमंकांजनपुलकं रिष्ट च जातरूपं च । . स्फटिकं चैताः षोडश रत्नभिदस्तत्रराजन्ते ॥१०३॥ युग्मं ॥
इस विजय द्वार के ऊपर के भाग में सोलह जाति के रत्न लगे हैं। उन सोलह रत्न के नाम इस प्रकार :- रत्न, वज्र, वैय, लोहिताक्ष, मसार गल्ल, हंसगर्भ,