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बगीचों की चौड़ाई एक समान कही है । इस में सत्य क्या है ? वह ज्ञानी भगवन्त ही जाने।"
सर्वे द्वीपाः समुद्राश्च जगत्यैवं विराजिताः । सर्वासां जगतीनां च स्वरूपमनयादिशा ॥८६॥
सर्व द्वीप और सर्व समुद्र को इस तरह से जगती अर्थात् कोट-किला होता है और इन सर्व किलों का स्वरूप इस किले के अनुसार ही समझना । (८६)
अर्थतस्यां जगत्यां च द्वाराणि स्युश्चतुर्दिशम् । विजयं वैजयन्तं च जयन्तं चापग जितम् ॥६॥
इस जगती किले की प्रत्येक दिशा में एक-एक द्वार है उनके नाम विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित है । (६०) .
सहस्रान पंचचत्वारिशतमुल्लंघ्य मेरूतः । योजनानां दिशि प्राच्यां शीताकूलंकषोपरि ॥१॥ विजयंद्वारमाख्यातमेवं, वित्थं पराण्यपि । दक्षिणस्यां पश्चिमायामुदीच्यां च यथाक्रमम् ॥६२॥ युग्मम् ॥
मेरू पर्वत से पूर्व दिशा में पैंतालीस हजार योजन जाने के बाद शीता नदी के किनारे पर विजय नाम का द्वार आया है, अन्य तीन द्वार इस तरह से मेरू के अनुक्रम से दक्षिण, पक्षिम और उत्तर दिशा में आये हैं । (६१-६२)
प्रत्येकमेषा द्वाराणामुच्छ्यो योजनाष्टकम् । व प्रभीत्तिसमाना हि युक्ता द्वारेषुतुंगता ॥६३॥ प्रत्येकं तेषु विस्तारो योजनानां चतुष्टयी । क्रोश पृथुारशाखा प्रत्येकं पार्श्वयोर्द्वयोः ॥६४॥ एवं सामस्त्यतो द्वारविस्तारो यदि भाव्यते । तदा सार्घानि चत्वारि योजनानि भवेदसौ ॥६५॥
किले की दीवार अनुसार प्रत्येक द्वार की ऊँचाई आठ योजना की है । क्योंकि किले की दीवार आठ योजन ऊँची है, प्रत्येक द्वार की चौड़ाई चार योजन की है। दोनों तरफ के दोनों दरवाजों की चौखट एक-एक कोशा की है, इसके साथ में गिने इन विजय द्वारों की चौड़ाई साढ़े चार योजन की होती है । (६३-६५)