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(१५७)
पद्मासनं च गरूडासनं सिहासनं क्वचित् ।
भद्रासनं च मकरासनं चाति मनोहरम् ॥७६॥
प्रत्येक प्रासाद पर एक-एक आसन है, उसमें कहीं कौंचासन कहीं पर हंसासन, कही पर पद्मासन, कहीं गरूडासन, कहीं सिंहासन, कहीं भद्रासन, कहीं मकरासन इस तरह अलग-अलग प्रकार के सुन्दर आसन है (७८-७६) तथा – नाना क्रीडागृहाः सन्ति तयोश्च वन खंडयोः ।
क्वचित् प्रेक्षणक गृहं क्वचिच्च केतकीगृहम् ।।८०॥ लतागृहं गर्भगृहं. क्वचिच्च कदली गृहम् । कुत्रचित् मज्जनगृहं प्रसाधनगृहं क्वचित् ॥१॥
इन दोनों बगीचों में विविध प्रकार के कीड़ागृह हैं कही पर वनखंड, कहीं पर नाटक गृह है, कहीं पर केतकी गृह है, कहीं लता गृह, कहीं गर्भ गृह, कहीं कदली गृह, कहीं स्नान गृह है तो कहीं पर वस्त्रालंकार गृह शोभायमान है। (८०-८१)
प्रत्येकं च गृहेष्वेषु विभात्येकै कमासन् । क्रीडांतां तत्र देवानां योग्यं रत्नमणीमयम् ॥२॥
और वहां प्रत्येक गृह में देवों को क्रीडा करने योग्य रत्नमणिमय आसन भी है । (८२) तथा-मृद्विकामल्लिकाजातीमालत्यादिलताततेः।
रत्नातमनस्तत्र तत्र भूयांसो भान्ति मण्डपः ॥८३॥ वहां पर. द्राक्ष, मल्लिका, जाइ और मालिती आदि लताओं के अनेक रत्नमय मंडप भी है । (८३)
मंडपेषु तथैतेषु जात्य कांचन निर्मिताः । शिलानां पट्टकाः सन्ति क्रौंचाद्यासन संस्थिताः ॥१४॥
इन मंडपों में कौंचादिक आसनों पर उत्तम सुवर्णमय शिला पटों पर शोभायमान हो रहे हैं । (८४)
एतेषु पर्वतेष्वेषु गृहेषु मंडपेषु च । दीर्घिकादिषु च स्वैरं क्रीडान्ति व्यन्तरामराः ॥८५॥