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________________ (१५६) इन दोनों आश्चर्य कारी बगीचों के अन्दर स्थान-स्थान पर पुष्करिणी, वाव छोटे सरोवर बड़े सरोवर भी देखने को मिलते हैं । (७१) सखोत्ताराः तपनीयतलाः सद्वभित्तयः । नानारत्नबद्धतीर्थाः सुवर्णरूप्य वालुकाः ॥७२॥ काश्चिज्जात्यासवरसा काश्चिच्च वारूणी रसाः । सुधीप मजलाः काश्चित् काश्चिदि क्षु रसोदकाः॥७३॥ एवं नानास्वाद जलाः शतपत्रादिपंकजैः ।... मनोज्ञास्ताः पुष्करिण्यः क्रीडाभिर्भाति नाकिनाम ॥७४॥ विशेषकं । . अन्दर सुखपूर्वक उतर सके इस तरह उस पुष्करिणी को. सुवर्ण मय तली है, वज्रमय दिवार है, विविध प्रकार के रत्नों से बनाये गये घाट है, और इसमें सुवर्णमय और चान्दीमय रेती है, कईयों में उत्तम मदिरा जैसा कईयों में वारूणी रस समान, कईयों में अमृत समान और इक्षुरस समान जल भरा है । इस प्रकार विविध स्वादिष्ट जल वाली ये वावडियां शतपत्र आदि कमलों से और संर (देव) वृंदो की लगातार क्रीड़ा के कारण अत्यन्त शोभायमान है । (७२-७४) स्पष्टाष्ट मंगलैः छत्र चामर ध्वज राजिभिः । त्रिसोपानान्यासु चतुर्दिशं राजन्ति तोरणैः ॥७५॥ इन वावड़ियों के प्रत्येक दिशा में तीन-तीन सोपान है । उसके ऊपर अष्ट मंगल, छत्र चामर, ध्वज और तोरण शोभायमान है । (७५) भान्ति क्रीडा सरांस्येवं यथार्ह दीर्घिका अपि । चतुर्दिशं त्रिसोपानादिभिः रत्नमणीमयैः ॥७६॥ इसी तरह इन छोटे जलाशय और क्रीड़ा सरोवर की चारों दिशा में रत्नमय और मणिमय तीन-तीन सोपान शोभते हैं । (७६) रम्याः क्रीडा पर्वताश्च भान्ति तत्र पदे पदे । तेषां प्रत्येक मेकैकः प्रासादो भाति मूर्धनि ॥७७॥ वहां स्थान-स्थान पर मनोहर क्रीडा पर्वत शोभते हैं उनके शिखर पर एकएक प्रसाद शोभ रहा है । (७७) प्रतिप्रासादमेकैकः मध्ये सज्जितमासनम् । अस्ति क्रोंचासनं क्वपि हंसासनमपि क्वचित् ॥७८॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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