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तथा तस्यां रत्नमय्यो राजन्ते वहुवल्लयः । बासन्तीचम्पकाशोककुन्दातिमुक्तकादयः ॥५८॥
उसमें वासंती, चंपक अशोक, कुंद और अति मुक्तक आदि अनेक रत्नमय लतायें शोभ रही है । (५८)
लताश्च ताः स्तबकिताः पुष्पिताः पल्लवान्विताः। . प्रणताः कीडदमरमिथुनप्रश्रयादिव ॥५६॥
इन लताओं के ऊपर गुच्छ, पुष्प और पल्लव नये कोमल पत्ते भी है वहां क्रीड़ा करते देव-देवियां प्रति विनय से मानो नीचे झुक रहा है । (५६) __परिक्षेपेण जगती समाना विस्तृता च सा । ....
शतानि पंच धनुषामुत्तुंगा त्वर्धयोजनम् ॥६०॥
उस वेदिका का घेराव जगती के समान है । चौड़ा पांच सौ धनुष्य है और ऊंचाई दो कोश है । (६०) .
स्थाने स्थाने सर्व रत्नमय पद्मोपशोभिता । पद्मप्राधान्यतो नाम्ना सा पद्मवर वेदिका ॥६१॥
यह वेदिका सर्वरत्न, पद्म कमल से स्थान-स्थान पर शोभायमान होती है और इस तरह पद्म विशेष होने से पद्मवर वेदिका कहलाती है । (६१)
विभाति वन खंडाभ्यां सा पद्मवर वेदिका । उभयोः पार्श्वयोः स्थूलकुलाभ्यामिव निम्नगा ॥१२॥
जैसे दोनों किनारों से नदी शोभायमान होती है वैसे दोनों तरफ बगीचों से यह पद्मवर वेदिका शोभायमान है । (६२)
परिक्षेपेण जगतीतुल्यौ तो वनखंडकौ ।' सार्धचापशतद्वंद्वन्युनद्वियोजनाततौ ॥६३॥
प्रत्येक बगीचों के घेराव जगती समान है । और इसके विस्तार दो योजन में दो सौ पचास धनुष्य कम है । (६३)
तत्र च - वेदिका व्यास संयुक्तो विस्तारो वनयोर्द्वयोः। स्यात्पूर्णो जगती व्यासो योजनानां चतुष्टयम् ॥६४॥