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________________ (१५०) नित्यं कुसुमितैस्तत्र तत्र देशे विराजते । वनैरनैकैर्जम्बूनां जम्बूद्वीपः ततोऽपि च ॥३२॥ एक पल्योपम की आयुष्य वाला तथा महान समृद्धि वाला 'अनादृत' नामक अधिष्ठायक देव के आश्रयरूप और विविध रत्नमय-जम्बू नामक वृक्ष अधिक होने से इसका नाम 'जम्बूद्वीप' पड़ा है अथवा वहां हमेशा प्रफुल्लित जम्बू के विशाल वन होने के कारण जम्बू द्वीप नाम पड़ा है । (३०-३२) . विष्कम्मायामतश्चैषलक्षयोजनसम्मितः । परितः परिधिस्तवस्य श्रूयतां यः श्रुते श्रुतः ॥३३॥ लक्षत्रय योजनानां सहस्त्राणि च षोडश । क्रोशास्त्रयः तदधिकमष्टाविंशं धनुः शतम् ॥३४॥ त्रयोदशांगुलास्सार्धा यवाः पंचैकयूकिका । जम्बू द्वीपस्य गणितपदं वक्ष्येऽथ तत्वदः ॥३५॥ युग्मं । : यह जम्बू द्वीप एक लाख योजन लम्बा चौड़ा है । इसका चारों तरफ का 'घेराव तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष्य, साढ़े तेरह अंगुल, पांच जौ और एक ज् प्रमाण की परिधि है । ऐसा शास्त्रकारों ने कहा है । (३३-३५) शतानि सप्त कोटीनां नवतिः कोटयः पराः । लक्षाणि सप्तपंचाशत्. षट्सहस्रोनितानि च ॥३६॥ सार्धं शतंयोजनानां पादोनक्रोश यामलम् । . धनूंषि पंचदश च साधू करद्वयं तथा ॥३७॥ युग्मं । अयं भावः - इयन्ति जम्बू द्वीपस्य योजन प्रमिता नि वै । चतुरस्राणि खंडानि स्युः क्रोशाद्यतिरिच्यते ॥३८॥ इसका गणितपद अर्थात क्षेत्रफल सात सौ नब्बे करोड़ छप्पन लाख चौरानवे हजार एक सौ पचास योजन, पौने दो कोस, पंद्रह धनुष्य एक सौ अट्ठाईस और अढ़ाई हाथ है । अर्थात् जम्बूद्वीप के इतनी संख्या में योजन प्रमाण चोरस खंड होते है । कोश, धनुष्य आदि कहा है वे उसके उपरांत समझना । (३६-३८) असो सहस्राणि नवनवतिः स्यात्समुच्छ्रितः ।। साधिकानि योजनानामुद्विद्धश्च सहस्रकम् ॥३६॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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