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________________ ( १५१ ) उद्वेोच्छ्रय योगे तु स्यादूर्ध्वाधः प्रमाणतः । जम्बू द्वीपो योजनानां लक्षमेकं किलाधिकम् ॥४०॥ यह जम्बू द्वीप निन्यानवे हजार से कुछ अधिक ऊँचा है और एक हजार योजन नीचा है । इसका जोड़ करते, इसका ऊर्ध्वाध: प्रमाण एक लाख योजन से कुछ अधिक होता है । ऐसा तत्वज्ञानियों ने कहा है । (३६-४०) 1 आहः जलशयादौ शैलादौ व्यवहारो हि सम्मतः । • उद्वेधोच्चत्वयोः जम्बूद्वीपे स तु कथं भवेत् ॥४१॥ यहां प्रश्न करते हैं कि - जलाशय, पर्वत, आदि की तो गहराई और ऊँचाई होना योग्य है, परन्तु जम्बू द्वीप की गहराई और ऊंचाई किस तरह होती है । (४१) अत्र ब्रुमः - हीयमाना प्रतीच्यां भूर्धर्मायां समभूतलात् । सहस्त्र योजनोंडांते स्यात् क्रमाद्विजयद्वये ॥४२॥ तत्राधो लौकिक ग्रामाः सन्ति सर्वेषु तेषु च । द्वीपस्यास्य व्यवहारात्तावानुद्वेध उच्यते ॥ ४३॥ जम्बूद्वीपार्ह तामेतन्सुमेरो: पांडु के वने । अभिषेक शिलोत्संगेऽभिषेकः क्रियते यतः ॥४४॥ • जम्बू द्वीप व्यवहारं मेरौ संभाव्य सुष्टु तत् । प्रज्ञप्तं तावदुच्चत्वं जम्बूद्वीपस्य तात्विकै ॥४५॥ इस शंका का समाधान करते हैं कि - पृथ्वी पश्चिम दिशा में धर्मा नारकी और घटती जाती है वह अनुक्रम से दो विजय में सम भूतल से एक हजार योजन नीचे उतरती है । वहां अधोलोक के गांव आते है और इन सब में इस द्वीप का व्यवहार होने से इसकी इतनी गहराई कहलाती है । और इस जम्बूद्वीप में जोजो तीर्थंकर होते हैं, इनका मेरू पर्वत के पांडकवन की शिला पर अभिषेक करने में आता है, इसलिए जम्बूद्वीप का बुद्धस्थल तक व्यवहार गिनकर तत्वज्ञानियों ने इसकी इतनी ऊंचाई कही है । (४२-४५) तथाह जम्बू द्वीप प्रज्ञप्त्याम् - "एगं जो अण सहस्सं उव्वेहेणं ॥ णवणउति जोअण सहस्साइं साइ रेगाई उढंढ उच्चत्तेणं साइरेगं जो अण सय सहस्सं सत्वग्गेणं पण्णत्ते ॥" इस विषय में जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भी कहा है कि - 'जम्बू द्वीप
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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