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(१४६) यावदेवं क्रमात् द्वीपं सूर्यवरावभासकम् ।। परिवेष्टयं स्थितः सूर्यवरावभासवारिधिः ॥२४॥
इसी तरह अन्तिम सूर्यवरावभास द्वीप आया है, और इसके आस-पास बलयाकार इसी नाम का समुद्र है । (२४) ।
ततश्चैकैकेन नाम्ना न त्रिप्रत्यवतारणम् । देव द्वीपो देववाद्धिः नागद्वीपस्तदम्बुधिः ॥२५॥ यक्ष द्वीपो यक्षवार्धिः भूतद्वीपस्तदम्बुधिः । स्वयं भूरमणद्वीपः स्वयंभूरणाम्बुधिः ॥२६॥
इसके बाद जो-जो द्वीप और जो-जो समुद्र है वह पूर्व अनुसार से तीन-तीन नाम के नहीं आते परन्तु एक नाम का द्वीप और समुद्र एक ही बार होता है जैसे कि देव द्वीप और उसके आस-पास देव समुद्र इसके आस-पास नागद्वीप और नाग समुद्र है । उसके बाद यक्षद्वीप और यक्ष समुद्र, भूत द्वीप और भूत समुद्र, स्वयं भू रमण द्वीप और स्वयं भू रमण समुद्र है । (२५-२६)
जम्बू द्वीपादयश्चैतै स्थानद्विगुणविस्तृताः । सर्वे स्वयंभूरमणार्णवान्ता द्वीपवाद्धर्यः ॥२७॥ .. जम्बू द्वीपाद्यथा सिन्धुः लवणो द्विगुणः ततः । - घातकीखंड इत्येवमन्त्यात् द्वीपात् तदम्बुधिः ॥२८॥
जम्बू द्वीप से लेकर स्वयं भू रमण समुद्र तक के सब द्वीप, समुद्र उत्तरोत्तर दो गुणा, दो गुणा विस्तार वाला है । जैसे कि जम्बू द्वीप से लवण समुद्र दो गुणा है लवण समुद्र से घातकीखंड द्वीप दूना है । इत्यादि इसी तरह अन्तिम द्वीप से अन्तिम समुद्र दुगुना होता है । (२७-२८)
तवायं सर्वतः क्षुल्लः सर्वाभ्यन्तरतः स्थितः । विष्वक् प्रतरं वृत्तश्च पूर्णेन्दु मंडलाकृतिः ॥२६॥
इस तरह जम्बू द्वीप सर्व के बीच में है और सबसे छोटा है इसका आकार पूर्णिमा के चन्द्रमा समान गोल और सपाट है । (२६)
अस्या द्वीपस्याधिपतेः एक पल्योपमायुषः । महर्द्धिकानादृताख्यदेवस्याश्रयभूतया ॥३०॥ जम्ब्वा नानारत्नमय्या वक्ष्यमाणास्वरूपया । सदोपलक्षितो द्वीपो जम्बूद्वीप इति स्मृतः ॥३१॥ विशेषकं ।