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कुक्षी कृत्य च कालोदं पुष्कर द्वीप आस्थितः । पुष्कर द्वीपमावेष्टय स्थितः पुष्करवारिधिः ॥८॥
इस लवण समुद्र के आस-पास घातकी खंड नाम का द्वीप आता है, उस द्वीप के आस-पास कालोदधि समुद्र आया है, इस समुद्र की चारों तरफ वलयाकार पुष्कर द्वीप है और इसके आस पास ऐसा ही पुष्कर समुद्र आया है । (८)
एवमग्रेऽपि सकलाः स्थिता द्वीपपयोधयः । परः पूर्वं समावेष्टयाब्धयो द्वीपसमाभिधाः ॥६॥ ते चैवम् -
वारूणीवरनामा च द्वीपोऽब्धिः वारूणीवरः । वरूणवरेत्येषापि श्रूयतेऽस्य श्रुतेऽभिधाः ॥१०॥
ततः क्षीरवरो द्वीप: क्षीरोदश्चास्य वारिधिः । ततो घृतवरो द्वीपो धृतोदः पुनरम्बुधिः ॥११॥ तत इक्षुवरो द्वीप इक्षुदश्च तदम्बुधिः 1 नन्दीश्वरामिधो द्वीपो नन्दीश्वरोदवारिधिः ॥१२॥
इसी तरह आगे भी द्वीप समुद्र एक दूसरे से लिपट कर रहे हैं । वह इस तरह से - वारूणीवर नाम का द्वीप, फिर वारूणी वर नाम समुद्र है, फिर क्षीरवर द्वीप और उसके आस-पास क्षीरोद समुद्र है, उसके बाद धृतवर द्वीप है और उसके आस-पास धृतोद समुद्र है, उसके बाद इक्षुवरद्वीप और उसके आस-पास इक्षुद समुद्र हैं उसके बाद नन्दीश्वर द्वीप है और फिर नन्दीश्वरोद समुद्र आया है । (६-१२)
. स्युः त्रिप्रत्यवताराणि नामधेयान्यतः परम । अरूण प्रभृति द्वीपाब्धीनां तस्मात्तथा ब्रुवे ॥१३॥ अरुणश्चारुणवरोऽरुवराव भासक: 1
कुंडल: कुंडलवर: तथा तदवभासकः ||१४|| शंखः शंखवर: शंखवरावभास इत्यपि । रूचको तदवभासकः 119211
रूचक वरः
भुजगो भुजगवरस्तदवभासकोऽपि च । कुशः कुशवरश्चैव कुशवरावभासकः ॥१६॥