SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३४) मघाभिधाऽथ पृथिवी षष्टी स्पष्टं निरूप्यते । तमसामतिबाहुल्याद्या गोत्रेण तमः प्रभा ॥२६२॥ अब मघा नाम की छठी नरक है, वहां तमस् अर्थात् अन्धकार अधिकतर होने के कारण तमः प्रभा के नाम से पहचानी जाती है, इसका निरूपण करते है। (२६२) तृतीयांशोनितान्यष्टौ योजनानि घनोदधेः । वलये विस्तृतिः षट् च पादोनानि द्वितीय के ॥२६३॥ . योजनं योजनस्य द्वादशभागीकृतस्य च । भागा एकादशेत्युक्ता तृतीये वलये मितिः ॥२६४॥ इस तमः प्रभा के भी तीन वलय हैं उसमें से प्रथम का घनोदधि वलय का विष्कंभ सात पूर्णांक दो तृतीयांश योजना है। दूसरे का पौने छ: योजन है, और तीसरे का एक पूर्णांक दस ग्यारह अंश योजन है । (२६३-२६४) . योजनै पंच दशभिस्तृतीयभागसंयुतैः ।। भवत्येवम लोकश्च मघापर्यन्तभागतः ॥२६५॥ इस हिसाब से पंद्रह पूर्णांक एक तृतीयांश योजनं से मघा की सीमा पूर्ण होती है । वहां से आगे चारो तरफ से अलोक है । (२६५) लक्षमेकं योजनानां सषोडशसंहस्रकम । वाहल्यमस्यां निर्दिष्टं प्राग्दत्राप्युपर्यधः ॥२६६॥ मुक्त्वा सहस्रमेकैकं मध्ये स्युः प्रस्तरास्त्रयं । सहस्राणि द्विपंचाशत् सार्द्धान्येतेषुचान्तरम् ॥२६७॥ युग्मं । इसकी मोटाई एक लाख सोलह हजार योजन प्रमाण की है । इस में भी पूर्व के समान ऊपर नीचे हजार-हजार योजन छोड़कर मध्य में एक लाख चौदह हजार योजन प्रमाण भाग में तीन प्रतर है । उनका अन्तर एक दूसरे के बीच में साढे बावन हजार योजन का है । (२६६-२६७) हिमवाईलल्लकाः त्रयोऽमी नरकेन्द्रकाः । क्रमात् त्रिषु प्रस्तटेषु प्राग्वदेभ्योऽष्ट पंक्तयः ॥२६८॥ इन तीन में१- हिम २- वाईल और ३- लल्लक नाम के तीन नरकेन्द्र हैं और इन प्रत्येक में पूर्व समान आठ पंक्तियां निकलती हैं । (२६८)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy