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इस नारक का उत्पत्ति समय और च्यवन काल बीच का अन्तर उत्कर्षत एक महीने का है और जघन्यतः एक समय मात्र का है । (२३३)
इस तरह पंक प्रभा नाम की नरक पृथ्वी का स्वरूप कहा है । (४)
अथरिष्टाभिधा पृथ्वी पंचमी परिकीर्त्यते । .. - या धूमरूपबाहुल्याध्धूमप्रभेति गोत्रतः ॥२३४॥
अब रिष्टा नाम की पांचवी नरक है उसमें वहा धुएं की बहुलता होने के कारण धूम प्रभा नाम से जाना जाता है उसका निरूपण करने में आता है । (२३४)
वलयस्येह. विष्कं भः प्रथमस्य प्ररूपितः । .. . योजनस्य तृतीयांश संयुक्ता सप्तयोजनी ॥२३५॥ द्वितीय वलये सार्द्धपंचयोजनविस्तृतिः । तृतीये च द्वादशांशैर्दशभिः सह योजनम् ॥२३६॥'... इत्येवं पंच दशभिर्यो जनैश्च समन्ततः । स्यादलोकःतृतीयांशन्यूनैः धूमप्रभान्सतः ॥२३७॥
इस रिष्ट में भी तीन वलय है, उसमें प्रथम वलय का विष्कंभ सात पूर्णांक एक तृतीयांश योजन का है, दूसरे साढ़े पांच योजन प्रमाण है, और तीसरे का एक पूर्णांक पांच योजन षष्टांश योजन का प्रमाण है । इस प्रकार चौदह पूर्णांक दो तृतीयांश योजन से इस धूम प्रभा की सीमा पूर्ण होती है, और उसके बाद का । अलोक होता है । (२३५-२३७)
अष्टादशसहस्राढयलक्षयोजनसंमितम् । बाहल्यमस्यामुदितमुदितामितवाङ्मयैः ॥२३८॥
अनंत ज्ञान के स्वामी श्री केवली भगवन्त कह गये हैं कि इस नरक पृथ्वी की मोटाई एक लाख अठारह हजार योजन है । (२३८)
मुक्त्वासहस्रमेकै कं प्राग्वदत्राप्युपर्यधः ।... मध्येऽत्र षोडश सहस्राढययोजनलक्षके ॥२३६॥ भवन्ति प्रस्तटाः पंच तेषां प्रत्येकमन्तरम् । . योजनद्विशती सार्था सहस्राः पंच विंशतिः ॥२४०॥ युग्मं ।
सर्व नरक पृथ्वी के समान यहां भी ऊपर और नीचे के हजार-हजार योजन छोडकर मध्य के एक लाख सोलह हजार योजन प्रदेश में पांच प्रतर है, और ये