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________________ (१२६) तृतीये तु जघन्यैषा गदिता परमा पुनः । द्वाभ्यां साप्तिक भागाभ्यां संयुक्ता अष्ट सागरा ॥२२७॥ तीसरे प्रतर में नारको की आयुष्य स्थिति जघन्यतः सात पूर्णांक छः सप्तमांश सागरोपम की है और उत्कर्षतः आठ पूर्णांक दो सप्तमांश सागरोपम की है। अष्टाब्धयों द्विभागाढयाः तुर्ये जघन्यतः स्थितिः । पंचभिः साप्तिकै गैः सहाष्टाम्भोघयः परा ॥२२८॥ चौथे प्रतर में जघन्य स्थिति आठ पूर्णांक दो सप्तमांश सागरोपम की है, और उत्कर्षतः स्थिति आठ पूर्णांक पांच सप्तमांश सागरोपम की है । (२२८) पंचमे पंचभिर्भागैः सहाष्टसिन्धवोलघुः । ___एकेन साप्तिकांशेन सहोत्कृष्टानवार्णवाः ॥२२६॥ पांचवे प्रतर में यह नारक स्थिति जघन्यः आठ पूर्णांक पांच सप्तमांश सागरोपम की है और उत्कष्ट नौ पूर्णांक एक सप्तमांश सागरोपम की है । (२२६) षष्टे जघन्या त्वेकांशसंयुक्ता सागरा नव । चतुर्भि साप्तिकैर्भागैः सहोत्कृष्टा• नवाब्धय ॥२३०॥ . छट्टा प्रतर में इनका जघन्य आयुष्य नौ पूर्णांक एक सप्तमांश सागरोपम है और उत्कृष्ट आयुष्य नौ पूर्णांक चार सप्तमांश सागरोपम का है । (२३०) . इयमेवय जघन्येन सप्तमे स्थितिरास्थिता । उत्कर्षतः स्थितिश्चात्र जिनरुक्ता दशाब्धयः ॥२३१॥ सातवें प्रतर में उसकी स्थिति जघन्यतः नव पूर्णांक चार सप्तमांश सागरोपम है और उत्कर्षत: दस सागरोंपम पूर्ण है श्री जिनेश्वर देव ने कही है। (२३१) . नीला भवेदत्र लेश्या परमोऽवधिगोचरः । गव्यूतद्वयमघ्यर्द्व गव्यूतद्वितयं लघुः ॥२३२॥ इस नरक पृथ्वी के नारकी को नील लेश्या होती है इनको अवधिज्ञान क्षेत्र उत्कर्षतः अढाई कोश है और जघन्य से दो कोश का होता है । (२३२) उत्पत्तेश्च्यवनस्यापि नारकाणामिहान्तरम् । मासमेकं भवेज्जयेष्टं जघन्यं समयावधि ॥२३३।। इति पंक प्रभा पृथिवी ॥४॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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