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________________ (१२८) कहा है - जैसे कि - वहां उसने सिंह आदि का रूप धारण कर लक्ष्मण के साथ में युद्ध करते शम्बुक तथा रावण को देखा इस तरह उस परमाधार्मी ने 'तुम इस तरह लड़ाई कर रहे हो तो तुमको कुछ दुःख नहीं होगा।' इस प्रकार कह कर उनको अग्नि कुंड में डाल दिया । (१-२) शतं सपादं हस्तानां प्रथमेऽङ्गं द्वितीयके । स्यात् षट्चत्वारिंशशतम्नं चतुर्भिरंगुलैः ॥२२१॥... करास्तृतीये षट्षष्टिशतं सषोऽशांगुलम् । सप्ताशीतिशतं तुर्येऽङ् गुलैः द्वादशभिः युतम् ॥२२२॥ .. अष्टाधिके द्वे शते च पंचमेऽष्टांगुलाधिके । .. .. षष्टे च प्रस्तटे देहमानं हस्तशतद्वयम् ॥२२३॥ एकोनत्रिंशता हस्तैः चतुर्भिः चांगुलैः युतम् । सप्तम प्रस्तटे देहो हस्ताः सार्धं शतद्वयम् ॥२२४॥ युग्में । इस पंक प्रभा नरक के प्रथम प्रतर में देहमान सवा सौ हाथ का है, दूसरे में एक सौ पैंतालीस, हाथ बीस अंगुल है, तीसरे में एक सौ छियासठ हाथ और सोलह अंगूल देहमान है, चौथे में एक सौ सत्तासी, हाथ और बारह अंगूल है पांचवे में दो सौ आठ हाथ आठ अंगूल देहमान है और छठे में दो सौ उन्तीस हाथ और चार अंगूल है और अन्तिम सातवें में देहमान दो सौ पंचास हाथ है। (२२१-२२४) प्रथम प्रस्तटे ऽथायुः जघन्यं सप्तसागरी ।. उत्कृष्टा सात्रिभिः वार्द्धिभागैर्युक्ता च साप्तिकैः ॥२२५॥ अब इन नरकों की आयु स्थिति सम्बन्ध में कहते हैं - पंक प्रभा के पहले प्रतर में नारको का आयुष्य जघन्य रूप में सात सागरोपम है और उत्कृष्ट रूप में सात पूर्णांक तीन सप्तमांश सागरोपम है । (२२५) द्वितीय प्रस्तटे त्वेषा जघन्या कीर्तिता स्थितिः । उत्कृष्टा षट्साप्तिकांशसमेताः सप्तवार्द्धयः ॥२२६॥ दूसरे प्रतर में नारको का आयुष्य जघन्य रूप में सात पूर्णांक तीन सप्तमांश सागरोपम है, और उत्कृष्ट रूप में सात पूर्णांक छह सप्तमांश सागरोपम होता है । (२२६)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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