________________
.
(१२७) .
यह और इसके बाद की सर्व नरक पृथ्वी में परमाधामी कृत वेदना नहीं है केवल क्षेत्र वेदना और परस्पर कृत वेदना, इस तरह दो ही प्रकार की वेदना होती है । (२१६) ।
परमेताः प्राक्तनाभ्योऽनन्तानन्तगुणाधिकाः ।। तीवाः तीव्रतराः तीव्रतमाः चानुक्रमादधः ॥२१७॥
परन्तु यह वेदना पूर्व की वेदना से अनंत गुना होती है और वह भी नीचे से नीचे जाय तो वैसे-वैसे अनुक्रम से तीव्र अधिक तीव्र और अत्यन्त तीव्र होती जाती है । (२१७)
तत्राप्यत्रो परितनप्रतरेषु बहुष्वपि । उष्णास्तोकेष्वधःस्थेषु शीता 'च क्षेत्रवेदना ॥२१८॥
और इसमें ऊपर के बहुत प्रतर में क्षेत्र वेदना उष्ण है जबकि नीचे के थोड़े प्रतरो में शीत है । (२१८)
उष्णेषु च नरकेषु नारकाः शीतयोनयः । नरकेषु च शीतेषु नारकाः उष्णयोनयः ॥२१६॥
वहां नरक में शीत योनि वाले आवास है वे उष्ण है और उष्ण योनि वाले आवास है वें शीत होते हैं । (२१६) :
सर्वेष्वपिनरकेषु ज्ञेय एवं विपर्ययः । नारकोत्पत्तिदेशान्यक्षेत्रयोः सोऽति दुःखदः ॥२२०॥
सभी नरकों में जीवों का उत्पत्ति स्थान और आवास के क्षेत्र में विपरीत है और वह अत्यंत मुश्किल सहन होता है । (२२०)
हैम त्रिषष्टि चरिते सप्तमपर्वणि त्व त्रापि परमाधार्मिक कृता वेदना . उक्ता ॥ तथाहि -
सिंहादिरूपैः विकृतैः तत्र शम्बूकरावणौ । लक्ष्मणेन समं क्रुद्धौ युद्धयमानौ ददर्श सः ॥१॥ नैवं वो युद्धयमानानां दुःखं भावीति वादिनः । परमाधार्मिकाः क्रुद्धा अग्नि कुंडेषु तान्नयधुः ॥२॥
श्री हेमचन्द्रा चार्य विरचित त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र में तो इस पंक प्रभा नाम पृथ्वी के नरक जीब को भी परमाधामी कृत वेदना होती है । इस तरह