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(११६) इस नरक के नारक जीव की उत्पत्ति और च्यवन का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कर्षतः सात दिन का है । (१६२)
इस प्रकार दूसरी शर्करा प्रभा नामक नरक पृथ्वी का वर्णन हुआ । (२) अथ शैलाभिधा पृथ्वी तृतीया परिकीर्त्यते । या वालुकानां बाहुल्यात् गोत्रेण वालुकाप्रभा ॥१६३॥
अब तीसरी शैला नामक नरक पृथ्वी का वर्णन करते हैं । इस शैला में वालुका अर्थात् रेती की बहुलता होने से यह वालुका प्रभा नाम से जानी जाती है । (१६३)
अस्यां प्रथमवलये विष्कम्भो योजनानि षट् । द्वौ त्रिभागो योजनस्य द्वितीये वलये पुनः ॥१६४॥ पंचैव योजनानि स्युः वलयेऽथ तृतीय के । योजनस्य द्वादशांशैरष्टभिः सह योजनम् ॥१६५॥ युग्मं ।
इसमें प्रथम वलय का विष्कंभ छः योजन है, दूसरे वलय का पांच पूर्णांक दो तृतीयांश है और तीसरे वलय का पांच पूर्णांक दो तृतीयांश योजन है । इसके साथ द्वादशांश का आठवां भाग योजन का मान होता है । (१६४-१६५)
त्रयोदशभिरित्येवं सतृतीयांशयोजनैः । अलोको वालुका पृथ्वीपर्यन्ततः प्ररूपितः ॥१६६॥ .. शेष घनोदध्यादि स्यरूपं धर्मांवत् ।
इस तरह से कुल तेरह पूर्णांक एक तृतीयांश योजन में वालुका प्रभा की सीमा पूरी होती है, उसके आगे चारों तरफ अलोक है । (१६६)
इसको धनोदधि आदि शेष स्वरूप धर्मा अनुसार है।
अष्टाविंशत्या सह स्त्रैः योजनानां समन्वितम् । लक्षं बाहल्यमादिश्टंअस्यां दृश्टजगत्रयैः ॥१६७॥
इस शैला की मोटाई एक लाख अट्ठाईस हजार योजन, तीन जगत् के नाथ ने देखा है। (१६७)
मुक्तवा चैकैकं सहस्रं प्राग्वदस्यामुपर्यधः । मध्ये षड्विंशतिसहस्राढयैकलक्षयोजनम् ॥१६८॥