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(११७) हाथ अठारह अंगुल का है छठे में छयालीस हाथ इक्कीस अंगुल का है, सातवें में पंचास हाथ सम्पूर्ण है, आठवें में तिरपन हाथ तीन अंगुल का है, नौवे में छप्पन हाथ छह अंगुल का है, दसवें में उनसठ हाथ नौ अंगुल का है और ग्यारहवें प्रतर में बासठ हाथ और बारह अंगुल का होता है । (१४४-१४६ ) ।
स्थितिः जघन्यास्यामाद्येऽम्बुधिमानाऽपरा तु सा।
कृतैकादशभागस्याम्बुधेः भागद्वयान्विता ॥१५०॥ ___ इस नरक के प्रथम प्रतर में नारक का स्थिति काल जघन्य एक सागरोपम है और उत्कृष्ट एक पूर्णांक दो ग्यारहांश सागरोपम का है । (१५०)
द्वितीय प्रस्तटे लघ्वी द्विभाग सहितोऽम्बुधिः । उत्कृष्टा चौकादशां शैश्चतुर्भिर धिकोऽम्बुधिः ॥१५१॥
और इसके दूसरे प्रतर में नारक का स्थिति काल जघन्यतः एक पूर्णांक दो ग्यारहांश है और उत्कर्षतः एक पूर्णांक चार ग्यारहांश सागरोपम है । (१५१)
तृतीय प्रस्तरे वार्धिः चतुर्भागयुतो लघुः । षड्भिर्भागैः युतश्चाब्धिरूत्कृष्टा स्थिति राहिता ॥१५२॥
तीसरे प्रतर के नारक का स्थितिकाल जघन्यत एक पूर्णांक चार ग्यारहांश सागरोपम है तथा उत्कर्षतः एक पूर्णांक सगरोपम है (१५२)
जघन्या प्रस्तटे तुर्ये षड्भागयुतवारिधिः । उत्कृष्टा चाष्टभिर्भागैर्युक्त एकः पयोनिधिः ॥१५३॥
चौथे प्रतर के नारकों का स्थिति काल जघन्यतः एक पूर्णांक छ: ग्यारहांश और उत्कर्षतः एक पूर्णांक आठ ग्यारहांश सागरोपम का है । (१५३)
पंचमेऽल्पीयसी भागैरष्टभिः सह वारिधिः ।
गरीयसी चात्र भागैर्दशभिः सह तोयधिः ॥१५४॥
पांचवे प्रस्तर के नारकों का स्थिति काल जघन्यत एक पूर्णांक आठ ग्यारहांश और उत्कर्षतः एक पूर्णांक दस ग्यारहांश सागरोपम का है । (१५४)
दशभागान्वितश्चाब्धि षष्टे तु स्याज्जघन्यतः । उत्कर्षतश्चैक भागसंयुक्त सागरद्वयम ॥१५५।।
छठे प्रतर में नारको का स्थिति काल जघन्यतः एक पूर्णांक दस ग्यारहांश है और उत्कर्षतः दो पूर्णांक एक ग्यारहांश सागरोपम का है । (१५५)